-
Notifications
You must be signed in to change notification settings - Fork 1
/
John.txt
901 lines (901 loc) · 243 KB
/
John.txt
1
2
3
4
5
6
7
8
9
10
11
12
13
14
15
16
17
18
19
20
21
22
23
24
25
26
27
28
29
30
31
32
33
34
35
36
37
38
39
40
41
42
43
44
45
46
47
48
49
50
51
52
53
54
55
56
57
58
59
60
61
62
63
64
65
66
67
68
69
70
71
72
73
74
75
76
77
78
79
80
81
82
83
84
85
86
87
88
89
90
91
92
93
94
95
96
97
98
99
100
101
102
103
104
105
106
107
108
109
110
111
112
113
114
115
116
117
118
119
120
121
122
123
124
125
126
127
128
129
130
131
132
133
134
135
136
137
138
139
140
141
142
143
144
145
146
147
148
149
150
151
152
153
154
155
156
157
158
159
160
161
162
163
164
165
166
167
168
169
170
171
172
173
174
175
176
177
178
179
180
181
182
183
184
185
186
187
188
189
190
191
192
193
194
195
196
197
198
199
200
201
202
203
204
205
206
207
208
209
210
211
212
213
214
215
216
217
218
219
220
221
222
223
224
225
226
227
228
229
230
231
232
233
234
235
236
237
238
239
240
241
242
243
244
245
246
247
248
249
250
251
252
253
254
255
256
257
258
259
260
261
262
263
264
265
266
267
268
269
270
271
272
273
274
275
276
277
278
279
280
281
282
283
284
285
286
287
288
289
290
291
292
293
294
295
296
297
298
299
300
301
302
303
304
305
306
307
308
309
310
311
312
313
314
315
316
317
318
319
320
321
322
323
324
325
326
327
328
329
330
331
332
333
334
335
336
337
338
339
340
341
342
343
344
345
346
347
348
349
350
351
352
353
354
355
356
357
358
359
360
361
362
363
364
365
366
367
368
369
370
371
372
373
374
375
376
377
378
379
380
381
382
383
384
385
386
387
388
389
390
391
392
393
394
395
396
397
398
399
400
401
402
403
404
405
406
407
408
409
410
411
412
413
414
415
416
417
418
419
420
421
422
423
424
425
426
427
428
429
430
431
432
433
434
435
436
437
438
439
440
441
442
443
444
445
446
447
448
449
450
451
452
453
454
455
456
457
458
459
460
461
462
463
464
465
466
467
468
469
470
471
472
473
474
475
476
477
478
479
480
481
482
483
484
485
486
487
488
489
490
491
492
493
494
495
496
497
498
499
500
501
502
503
504
505
506
507
508
509
510
511
512
513
514
515
516
517
518
519
520
521
522
523
524
525
526
527
528
529
530
531
532
533
534
535
536
537
538
539
540
541
542
543
544
545
546
547
548
549
550
551
552
553
554
555
556
557
558
559
560
561
562
563
564
565
566
567
568
569
570
571
572
573
574
575
576
577
578
579
580
581
582
583
584
585
586
587
588
589
590
591
592
593
594
595
596
597
598
599
600
601
602
603
604
605
606
607
608
609
610
611
612
613
614
615
616
617
618
619
620
621
622
623
624
625
626
627
628
629
630
631
632
633
634
635
636
637
638
639
640
641
642
643
644
645
646
647
648
649
650
651
652
653
654
655
656
657
658
659
660
661
662
663
664
665
666
667
668
669
670
671
672
673
674
675
676
677
678
679
680
681
682
683
684
685
686
687
688
689
690
691
692
693
694
695
696
697
698
699
700
701
702
703
704
705
706
707
708
709
710
711
712
713
714
715
716
717
718
719
720
721
722
723
724
725
726
727
728
729
730
731
732
733
734
735
736
737
738
739
740
741
742
743
744
745
746
747
748
749
750
751
752
753
754
755
756
757
758
759
760
761
762
763
764
765
766
767
768
769
770
771
772
773
774
775
776
777
778
779
780
781
782
783
784
785
786
787
788
789
790
791
792
793
794
795
796
797
798
799
800
801
802
803
804
805
806
807
808
809
810
811
812
813
814
815
816
817
818
819
820
821
822
823
824
825
826
827
828
829
830
831
832
833
834
835
836
837
838
839
840
841
842
843
844
845
846
847
848
849
850
851
852
853
854
855
856
857
858
859
860
861
862
863
864
865
866
867
868
869
870
871
872
873
874
875
876
877
878
879
880
881
882
883
884
885
886
887
888
889
890
891
892
893
894
895
896
897
898
899
900
901
JN - - Hindi [ ]
अध्याय 1
1 आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था।
2 यही आदि में परमेश्वर के साथ था।
3 सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उसमें से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न न हुई।
4 उसमें जीवन था; और वह जीवन मुनष्यों की ज्योति थी।
5 और ज्योति अन्धकार में चमकती है; और अन्धकार ने उसे ग्रहण न किया।
6 एक मनुष्य परमेश्वर की ओर से आ उपस्थित हुआ जिसका नाम यूहन्ना था।
7 यह गवाही देने आया, कि ज्योति की गवाही दे, ताकि सब उसके द्वारा विश्वास लाएँ।
8 वह आ प तो वह ज्योति न था, परन्तु उस ज्योति की गवाही देने के लिये आया था।
9 सच्ची ज्योति जो हर एक मनुष्य को प्रकाशित करती है, जगत में आनेवाली थी।
10 वह जगत में था, और जगत उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, और जगत ने उसे नहीं पहिचाना।
11 वह अपने घर में आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया।
12 परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं:
13 वे न तो लोहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं।
14 और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उसकी ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा।
15 यूहन्ना ने उसके विषय में गवाही दी, और पुकारकर कहा, कि यह वही है, जिसका मैं ने वर्णन किया, कि जो मेरे बाद आ रहा है, वह मुझ से बढ़कर है क्योंकि वह मुझ से पहले था।
16 क्योंकि उसकी परिपूर्णता से हम सब ने प्राप्त किया अर्थात् अनुग्रह पर अनुग्रह।
17 इसलिये कि व्यवस्था तो मूसा के द्वारा दी गई, परन्तु अनुग्रह और सच्चाई यीशु मसीह के द्वारा पहुँची।
18 परमेश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा, एकलौता पुत्र** जो पिता की गोद में हैं, उसी ने उसे प्रगट किया।
19 यूहन्ना की गवाही यह है, कि जब यहूदियों ने यरूशलेम से याजकों और लेवीयों को उससे यह पूछने के लिये भेजा, “तू कौन है?”
20 तो उसने यह मान लिया, और इन्कार नहीं किया, परन्तु मान लिया कि मैं मसीह नहीं हूँ।
21 तब उन्होंने उससे पूछा, “तो फिर कौन है? क्या तू एलिय्याह है?” उसने कहा, “मैं नहीं हूँ।”: तो क्या तू वह भविष्यद्वक्ता है? उसने उत्तर दिया, “कि नहीं”।
22 तब उन्होंने उससे पूछा, “फिर तू है कौन? ताकि हम अपने भेजनेवालों को उत्तर दें।; तू अपने विषय में क्या कहता है?”
23 उसने कहा, मैं “जैसा यशायाह भविष्यद्वक्ता ने कहा है, ‘मैं जंगल में एक पुकारनेवाले का शब्द हूँ कि तुम प्रभु का मार्ग सीधा करो’।”
24 ये फरीसियों की ओर से भेजे गए थे।
25 उन्होंने उससे यह प्रश्न पूछा, कि यदि तू न मसीह है, और न एलिय्याह, और न वह भविष्यद्वक्ता है, तो फिर बपतिस्मा क्यों देता है?
26 यूहन्ना ने उनको उत्तर दिया, कि मैं तो जल से** बपतिस्मा देता हूँ,; परन्तु तुम्हारे बीच में एक व्यिक्तव्यक्ति खड़ा है, जिसे तुम नहीं जानते।
27 अर्थात् मेरे बाद आनेवाला है, जिस की जूती का बन्ध मैं खोलने के योग्य नहीं।
28 ये बातें यरदन के पार बैतनिय्याह में हुई, जहाँजहां यूहन्ना बपतिस्मा देता था।
29 दूसरे दिन उसने यीशु को अपनी ओर आते देखकर कहा, “देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना है, जो जगत के पाप उठा ले जाता है।
30 यह वही है, जिसके विषय में मैं ने कहा था, कि एक पुरूष मेरे पीछे आता है, जो मुझ से श्रेष्ठ है, क्योंकि वह मुझ से पहले था।
31 और मैं तो उसे पहिचानता न था, परन्तु इसलिये मैं जल से बपतिस्मा देता हुआ आया, कि वह इस्राएल पर प्रगट हो जाए।”
32 और यूहन्ना ने यह गवाही दी, कि मैं ने आत्मा को कबूतर की समाननाईं आकाश से उतरते देखा है, और वह उस पर ठहर गया।
33 और मैं तो उसे पहिचानता नहीं था, परन्तु जिस ने मुझे जल से बपतिस्मा देने को भेजा, उसी ने मुझ से कहा, कि जिस पर तू आत्मा को उतरते और ठहरते देखे; वही पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देनेवाला है।
34 और मैं ने देखा, और गवाही दी है, कि यही परमेश्वर का पुत्र है।।
35 दूसरे दिन फिर यूहन्ना और उसके चेलों में से दो जन खड़े हुए थे।
36 और उसने यीशु पर जो जा रहा था, दृष्टि करके कहा, “देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना है।”
37 तब वे दोनों चेले उसकी सुनकर यीशु के पीछे हो लिए।
38 यीशु ने मुड़करफिरकर और उनको पीछे आते देखकर उनसे कहा, “तुम किस की खोज में हो?” उन्होंने उससे कहा, “हे रब्बी, अर्थात् (हे गुरू), तू कहांकहाँ रहता है?”
उसने उनसे कहा, चलो, तो देख लोगे।
39 उसने उनसे कहा, “चलो, तो देख लोगे।” तब उन्होंने आकर उसके रहने का स्थान देखा, और उस दिन उसी के साथ रहे; और यह दसवें घंटे के लगभग था।
40 उन दोनों में से, जो यूहन्ना की बात सुनकर यीशु के पीछे हो लिए थे, एक तो शमौन पतरस का भाई अन्द्रियास था।
41 उसने पहले अपने सगे भाईं शमौन से मिलकर उससे कहा, कि हम को ख्रिरस्तस अर्थात् मसीह मिल गया।
42 वह उसे यीशु के पास लाया: यीशु ने उस पर दृष्टि करके कहा, “कि तू यूहन्ना का पुत्र शमौन है, तू केफा”, अर्थात् पतरस कहलाएगा।।
43 दूसरे दिन यीशु ने गलील को जाना चाहा,; और फिलिप्पुस से मिलकर कहा, “मेरे पीछे हो ले।”
44 फिलिप्पुस तो अन्द्रियास और पतरस के नगर बैतसैदा का निवासी था।
45 फिलिप्पुस ने नतनएल से मिलकर उससे कहा, कि “ जिसका वर्णन मूसा ने व्यवस्था में और भविष्यद्वक्ताओं ने किया है, वह हम को मिल गया; वह यूसुफ का पुत्र, यीशु नासरी है।”
46 नतनएल ने उससे कहा, “क्या कोई अच्छी वस्तु भी नासरत से निकल सकती है?” फिलिप्पुस ने उससे कहा, “चलकर देख ले।”
47 यीशु ने नतनएल को अपनी ओर आते देखकर उसके विषय में कहा, “देखो, यह सचमुच इस्राएली है: इस में कपट नहीं।”
48 नतनएल ने उससे कहा, “तू मुझे कहांकहाँ से जानता है?” यीशु ने उसको उत्तर दिया,; “उससे पहले कि फिलिप्पुस ने तुझे बुलाया, जब तू अंजीर के पेड़ के तले था, तब मैं ने तुझे देखा था।”
49 नतनएल ने उसको उत्तर दिया, कि “हे रब्बी, तू परमेश्वर का पुत्र हे; तू इस्राएल का महाराजा है ।”
50 यीशु ने उसको उत्तर दिया,; “मैं ने जो तुझ से कहा, कि मैं ने तुझे अंजीर के पेड़ के तले देखा, क्या तु इसी लिये विश्वास करता है? तु इस से बड़े बड़े काम देखेगा था ।”
51 फिर उससे कहा, “मैं तुम से सच सच कहता हूँ कि तुम स्वर्ग को खुला हुआ, और परमेश्वर के स्वर्गदूतों को मनुष्य के पुत्र के ऊपर उतरते और ऊपर जाते देखोगे ।”।
अध्याय 2
1 फिर तीसरे दिन गलील के काना में किसी का विवाह ब्याह था, और यीशु की माता भी वहाँ थी।
2 और यीशु और उसके चेले भी उस विवाह ब्याह में नेवते गए थे।
3 जब दाखरस घट गया, तो यीशु की माता ने उससे कहा, “कि उन के पास दाखरस नहीं रहा।”
4 यीशु ने उससे कहा, “हे महिला मुझे तुझ से क्या काम? अभी मेरा समय नहीं आया।”
5 उसकी माता ने सेवकों से कहा, “जो कुछ वह तुम से कहे, वही करना।”
6 वहाँ यहूदियों के शुद्ध करने की रीति के अनुसार पत्थर के छ: मटके धरे थे, जिसमें दो दो, तीन तीन मन समाता था।
7 यीशु ने उनसे कहा, “मटको में पानी भर दो।” सो उन्हो ने उन्हे मंहमुंह भर दिया ।
8 तब उसने उनसे कहा, “अब निकालकर भोज के प्रधान के पास ले जाओ ।” और वे ले गए।
9 वे ले गए, जब भोज के प्रधान ने वह पानी चखा, जो दाखरस बन गया था, और नहीं जानता था, कि वह कहाँं से आया हे, (परन्तु जिन सेवकों ने पानी निकाला था, वे जानते थे), तो भोज के प्रधान ने दूल्हे को बुलाकर, उससे कहा।
10 “हर एक मनुष्य पहले अच्छा दाखरस देता है, और जब लोग पीकर छक जाते हैं, तब मध्यम देता है; परन्तु तू ने अच्छा दाखरस अब तक रख छोड़ा है।”
11 यीशु ने गलील के काना में अपना यह पहिला चिन्ह** दिखाकर अपनी महिमा प्रगट की और उसके चेलों ने उस पर विश्वास किया।।
12 इस के बाद वह और उसकी माता, और उसके भाई, और उसके चेले, कफरनहूम को गए और वहाँ कुछ दिन रहे।।
13 यहूदियों का फसह का पर्व पब्र्ब निकट था, और यीशु यरूशलेम को गया।
14 और उसने मन्दिर में बैल, और भेड़ और कबूतर के बेचनेवालों ओर सर्राफों को बैठे हुए पाया।
15 तब उसने और रस्सियों का कोड़ा बनाकर, सब भेड़ों और बैलों को मन्दिर से निकाल दिया, और सर्राफों के पैसे बिखेर बिथरा दिए, और पीढ़ों को उलट दिया,।
16 और कबूतर बेचनेवालों से कहा,; “इन्हें यहाँ से ले जाओ।: मेरे पिता के भवन को व्यापार ब्योपार का घर मत बनाओ।”
17 तब उसके चेलों को स्मरण आया कि लिखा है, “‘तेरे घर की धुन मुझे खा जाएगी’।”
18 इस पर यहूदियों ने उससे कहा, “तू जो यह करता है तो हमें कौन सा चिन्ह दिखाता हे?”
19 यीशु ने उनको उत्तर दिया,; “ कि इस मन्दिर को ढा दो, और मैं इसेउसे तीन दिन में खड़ा कर दूँगा।”
20 यहूदियों ने कहा,; “इस मन्दिर के बनाने में छियालीस वर्ष लगे हैंें, और क्या तू उसे तीन दिन में खड़ा कर देगा?”
21 परन्तु उसने अपनी देह के मन्दिर के विषय में कहा था।
22 सो जब वह मुर्दों में से जी उठा तो उसके चेलों को स्मरण आया, कि उसने यह कहा था; और उन्होंने पवित्र शास्त्र और उस वचन की जो यीशु ने कहा था, प्रतीति की।।
23 जब वह यरूशलेम में फसह के समय, पर्वब्र्ब में था, तो बहुतों ने उन चिन्हों को जो वह दिखाता था देखकर उसके नाम पर विश्वास किया।
24 परन्तु यीशु ने अपने आप को उनके भरोसे पर नहीं छोड़ा, क्योंकि वह सब को जानता था,। 25 और उसे प्रयोजन न था, कि मनुष्य के विषय में कोई गवाही दे, क्योंकि वह आप जानता था, कि मनुष्य के मन में क्या है?
अध्याय 3
1 फरीसियों में से नीकुदेमुस नाम एक मनुष्य था, जो यहूदियों का सरदार था।
2 उसने रात को यीशु के पास आकर उससे कहा, “हे रब्बी, हम जानते हैं, कि तू परमेश्वर की आरे से गुरू हो कर आया है; क्योंकि कोई इन चिन्हों को जो तू दिखाता है, यदि परमेश्वर उसके साथ न हो, तो नहीं दिखा सकता।”
3 यीशु ने उसको उत्तर दिया,; “ कि मैं तुझ से सच सच कहता हूँ, यदि कोई नये सिरे से न जन्में तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता।”
4 नीकुदेमुस ने उससे कहा, “मनुष्य जब बूढ़ा हो गया, तो क्योंकर जन्म ले सकता है? क्या वह अपनी माता के गर्भ के गर्भ में दूसरी बार प्रवेश करके जन्म ले सकता है?”
5 यीशु ने उत्तर दिया, “कि मैं तुझ से सच सच कहता हूँ,; जब तक कोई मनुष्य जल और आत्मा से न जन्मे तो वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता।
6 क्योंकि जो शरीर से जन्मा है, वह शरीर है; और जो आत्मा से जन्मा है, वह आत्मा है।
7 अचम्भा न कर, कि मैं ने तुझ से कहा,; ‘कि तुम्हें नये सिरे से जन्म लेना अवश्य है।’
8 हवा जिधर चाहती है उधर चलती है, और तू उसका शब्द सुनता है, परन्तु नहीं जानता, कि वह कहांकहाँ से आती और किधर को जाती है? जो कोई आत्मा से जन्मा है वह ऐसा ही है।”
9 नीकुदेमुस ने उसको उत्तर दिया,; “कि ये बातें क्योंकर हो सकती हैं?”
10 यह सुनकर यीशु ने उससे कहा,; “तू इस्राएलियों का गुरू हो कर भी क्या इन बातों को नहीं समझता?।
11 मैं तुझ से सच सच कहता हूँ कि हम जो जानते हैं, वह कहते हैं, और जिसे हम ने देखा है उसकी गवाही देते हैं, और तुम हमारी गवाही ग्रहण नहीं करते।
12 जब मैं ने तुम से पृथ्वी की बातें कहीं, और तुम प्रतीति नहीं करते, तो यदि मैं तुम से स्वर्ग की बातें कहूँ, तो फिर क्योंकर प्रतीति करोगे?
13 और कोई स्वर्ग पर नहीं चढ़ा, केवल वहीं जो स्वर्ग से उतरा, अर्थात् मनुष्य का पुत्र जो स्वर्ग में है।
14 और जिस रीति से मूसा ने जंगल में सांप को ऊँंचे पर चढ़ाया, उसी रीति से अवश्य है कि मनुष्य का पुत्र भी ऊँचे ऊंचे पर चढ़ाया जाए।
15 ताकि जो कोई विश्वास करे उसमें अनन्त जीवन पाए।।
16 “क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।
17 परमेश्वर ने अपने पुत्र को जगत में इसलिये नहीं भेजा, कि जगत पर दंड की आज्ञा दे परन्तु इसलिये कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए।
18 जो उस पर विश्वास करता है, उस पर दंड की आज्ञा नहीं होती, परन्तु जो उस पर विश्वास नहीं करता, वह दोषी ठहरा चुका; इसलिये कि उसने परमेश्वर के एकलौते पुत्र के नाम पर विश्वास नहीं किया।
19 और दण्ड दंड की आज्ञा का कारण यह है कि ज्योति जगत में आई है, और मनुष्यों ने अन्धकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उनके काम बुरे थे।
20 क्योंकि जो कोई बुराई करता है, वह ज्योति से बैर रखता है, और ज्योति के निकट नहीं आता, ऐसा न हो कि उसके कामों पर दोष लगाया जाए।
21 परन्तु जो सच्चाई पर चलता है वह ज्योति के निकट आता है, ताकि उसके काम प्रगट हों, कि वह परमेश्वर की ओर से किए गए हैं।”
22 इस के बाद यीशु और उसके चेले यहूदिया देश में आए; और वह वहाँ उनके साथर रहकर बपतिस्मा देने लगा।
23 और यूहन्ना भी शालेम् के निकट ऐनोन में बपतिस्मा देता था। क्योंकि वहाँ बहुत जल था, और लोग आकर बपतिस्मा लेते थे।
24 क्योंकि यूहन्ना उस समय तक जेलखाने में नहीं डाला गया था।
25 वहाँ यूहन्ना के चेलों का किसी यहूदी के साथ शुद्धि के विषय में वाद-विवाद हुआ।
26 और उन्होंने यूहन्ना के पास आकर उससे कहा, “हे रब्बी, जो व्यिक्तव्यक्ति यरदन के पार तेरे साथ था, और जिस की तू ने गवाही दी है; देख, वह बपतिस्मा देता है, और सब उसके पास आते हैं।”
27 यूहन्ना ने उत्तर दिया, “जब तक मनुष्य को स्वर्ग से न दिया जाय तब तक वह कुछ नहीं पा सकता।
28 तुम तो आप ही मेरे गवाह हो, कि मैं ने कहा, ‘मैं मसीह नहीं, परन्तु उसके आगे भेजा गया हूँ।’
29 जिस की दुलहिन है, वही दूल्हा है: परन्तु दूल्हे का मित्र जो खड़ा हुआ उसकी सुनता है, दूल्हे के शब्द से बहुत हर्षित होता है; अब मेरा यह हर्ष पूरा हुआ है।
30 अवश्य है कि वह बढ़े और मैं घटूँं।।
31 “जो ऊपर से आता है, वह सर्वोत्तम है, जो पृथ्वी से आता है वह पृथ्वी का है; और पृथ्वी की ही बातें कहता है: जो स्वर्ग से आता है, वह सब के ऊपर है।
32 जो कुछ उसने देखा, और सुना है, उसी की गवाही देता है; और कोई उसकी गवाही ग्रहण नहीं करता।
33 जिस ने उसकी गवाही ग्रहण कर ली उसने इस बात पर छाप दे दी कि परमेश्वर सच्चा है।
34 क्योंकि जिसे परमेश्वर ने भेजा है, वह परमेश्वर की बातें कहता है: क्योंकि वह आत्मा नाप नापकर नहीं देता।
35 पिता पुत्र से प्रेम रखता है, और उसने सब वस्तुएँ उसके हाथ में दे दी हैं।
36 जो पुत्र पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है; परन्तु जो पुत्र की नहीं मानता, वह जीवन को नहीं देखेगा, परन्तु परमेश्वर का क्रोध उस पर रहता है।”।
अध्याय 4
1 फिर जब प्रभु को मालूम हुआ, कि फरीसियों ने सुना है, कि यीशु यूहन्ना से अधिक चेले बनाता, और उन्हें बपतिस्मा देता है।
2 (यद्यपि यद्यपि यीशु आप स्वयं नहीं वरन् उसके चेले बपतिस्मा देते थे),।
3 तब वह यहूदिया को छोड़कर फिर गलील को चला गया,।
4 और उसको सामरिया से होकर जाना अवश्य था।
5 इसलिएसो वह सूखार नामक सामरिया के एक नगर तक आया, जो उस भूमि के पास है, जिसे याकूब ने अपने पुत्र यूसुफ को दिया था।
6 और याकूब का कूआँं भी वहीं था।; सो यीशु मार्ग का थका हुआ उस कूएँं पर योंही बैठ गया।, और यह बात छठे घण्टे के लगभग हुई।
7 इतने में एक सामरी स्त्री जल भरने को आई।: यीशु ने उससे कहा, “मुझे पानी पिला।”
8 क्योंकि उसके चेले तो नगर में भोजन मोल लेने को गए थे।
9 उस सामरी स्त्री ने उससे कहा, “तू यहूदी होकर मुझ सामरी स्त्री से पानी क्यों माँगता है?” (क्योंकि यहूदी सामरियों के साथ किसी प्रकार का व्यवहार नहीं रखते।)।
10 यीशु ने उत्तर दिया, “यदि तू परमेश्वर के वरदानबरदान को जानती, और यह भी जानती कि वह कौन है जो तुझ से कहता है,; ‘मुझे पानी पिला,’ तो तू उससे माँगती, और वह तुझे जीवन का जल देता।”
11 स्त्री ने उससे कहा, “हे प्रभु, तेरे पास जल भरने को तो कुछ है भी नहीं, और कूआँं गहिरा है;: तो फिर वह जीवन का जल तेरे पास कहा से आया?
12 क्या तू हमारे पिता याकूब से बड़ा है, जिस ने हमें यह कूआँ कूआं दिया; और आपही अपने सन्तान, और अपने पशुओं ढोरों समेत उसमें से पीया?”
13 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “कि जो कोई यह जल पीएगा वह फिर प्यासापियासा होगा,।
14 परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक पियासा न होगा;: वरन् जोजो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा।”
15 स्त्री ने उससे कहा, “हे प्रभु, वह जल मुझे दे ताकि मैं प्यासी न होऊँ ं और न जल भरने को इतनी दूर आऊँं।”
16 यीशु ने उससे कहा, “जा, अपने पति को यहाँ बुला ला।”
17 स्त्री ने उत्तर दिया, “कि मैं बिना पति की हूँ।”: यीशु ने उससे कहा, “तू ठीक कहती है, ‘कि मैं बिना पति की हूँ।’
18 क्योंकि तू पाँच पति कर चुकी है, और जिसके पास तू अब है वह भी तेरा पति नहीं; यह तू ने सच कहा है।”
19 स्त्री ने उससे कहा, “हे प्रभु, मुझे लगताज्ञात होता है कि तू भविष्यद्वकताभविष्यद्वक्ता है।
20 हमारे बापदादों ने इसी पहाड़ पर भजन किया,: और तुम कहते हो कि वह जगह जहाँ ं भजन करना चाहिए यरूशलेम में है।”
21 यीशु ने उससे कहा, “हे नारी, मेरी बात काकी विश्वासप्रतीति कर कि वह समय आता है कि तुम न तो इस पहाड़ पर पिता का भजन करोगे, न यरूशलेम में।
22 तुम जिसे नहीं जानते, उसका भजन करते हो; और हम जिसे जानते हैं उसका भजन करते हैं; क्योंकि उद्धार यहूदियों में से है।
23 परन्तु वह समय आता है, वरन् अब भी है, जिसमें सच्चे भक्त पिता का भजन आत्मा और सच्चाई से करेंगे, क्योंकि पिता अपने लिये ऐसे ही भजन करनेवालों को ढूँंढ़ता है।
24 परमेश्वर आत्मा है, और अवश्य है कि उसके भजन करनेवाले आत्मा और सच्चाई से भजन करें।”
25 स्त्री ने उससे कहा, “मैं जानती हूँ कि मसीह जो ख्रिीस्तुस कहलाता है, आनेवाला है; जब वह आएगा, तो हमें सब बातें बता देगा।”
26 यीशु ने उससे कहा, “मैं जो तुझ से बोल रहा हूँ, वही हूँ।”।
27 इतने में उसके चेले आ गए, और अचम्भा करने लगे, कि वह स्त्री से बातें कर रहा है; तौभी किसी ने न पूछाकहा, “कि तू क्या चाहता है?” या “किस लिये उससे बातें करता है?।”
28 तब स्त्री अपना घड़ा छोड़कर नगर में चली गई, और लोगों से कहने लगी,।
29 “आओ, एक मनुष्य को देखो, जिस ने सब कुछ जो मैं ने किया मुझे बता दिया।: कहीं यही तो मसीह नहीं है?”
30 तबसो वे नगर से निकलकर उसके पास आने लगे।
31 इतने में उसके चेले यीशु से यह विनती करने लगे, “ कि हे रब्बी, कुछ खा ले।”
32 परन्तु उसने उनसे कहा, “मेरे पास खाने के लिये ऐसा भोजन है जिसे तुम नहीं जानते।”
33 तब चेलों ने आपस में कहा, “क्या कोई उसके लिये कुछ खाने को लाया है?”
34 यीशु ने उनसे कहा, “मेरा भोजन यह है, कि अपने भेजनेवाले की इच्छा के अनुसार चलूँ ं और उसका काम पूरा करूँ।
35 क्या तुम नहीं कहते, ‘कि कटनी होने में अब भी चार महीने पड़े हैं?’ देखो, मैं तुम से कहता हूँ, अपनी आँंखे उठाकर खेतों पर दृष्टि डालो, कि वे कटनी के लिये पक चुके हैं।
36 और काटनेवाला मजदूरी पाता, और अनन्त जीवन के लिये फल बटोरता है,; ताकि बोनेवाला और काटनेवाला दोनों मिलकर आनन्द करें।
37 क्योंकि इस पर यह कहावत ठीक बैठती है: ‘कि बोनेवाला और है और काटनेवाला और।’
38 मैं ने तुम्हें वह खेत काटने के लिये भेजा, जिसमें तुम ने परिश्रम नहीं किया: औरों ने परिश्रम किया और तुम उनके परिश्रम के फल में भागी हुए।”।
39 और उस नगर के बहुत से सामरियों ने उस स्त्री के कहने से यीशु पर विश्वास किया;, जिस ने यह गवाही दी थी, कि उसने सब कुछ जो मैं ने किया है, मुझे बता दिया, विश्वास किया।
40 तब जब ये सामरी उसके पास आए, तो उससे विनती करने लगे, कि हमारे यहाँ रह।: सो वह वहाँ दो दिन तक रहा।
41 और उसके वचन के कारण और भी बहुतेरों ने विश्वास किया।
42 और उस स्त्री से कहा, “अब हम तेरे कहने हीकी से विश्वास नहीं करते; क्योंकि हम ने आप ही सुन लिया, और जानते हैं कि यही सचमुच में जगत का उद्धारकर्ता है।”।
43 फिर उन दो दिनों के बाद वह वहाँ से निकलकूच करके गलील को गया।
44 क्योंकि यीशु ने आप ही साक्षी दी, कि भविष्यद्वक्ता अपने देश में आदर नहीं पाता।
45 जब वह गलील में आया, तो गलीली आनन्द के साथ उससे मिले; क्योंकि जितने काम उसने यरूशलेम में पर्वपब्र्ब के समय किए थे, उन्होंने उन सब को देखा था, क्योंकि वे भी पर्वपब्र्ब में गए थे।
46 तब वह फिर गलील के काना में आया, जहाँ ं उसने पानी को दाख रस बनाया था।: वहाँऔर राजा का एक कर्मचारी था जिसका पुत्र कफरनहूम में बीमार था।
47 वह यह सुनकर कि यीशु यहूदिया से गलील में आ गया है, उसके पास गया और उससे विनती करने लगा कि चलकर मेरे पुत्र को चंगा कर दे: क्योंकि वह मरने पर था।
48 यीशु ने उससे कहा, “जब तक तुम चिन्ह और अद्भुत काम न देखोगे तब तक कदापि विश्वास न करोगे।”
49 राजा के कर्मचारी ने उससे कहा,; “हे प्रभु, मेरे बालक की मृत्यु होने से पहले चल।”
50 यीशु ने उससे कहा, “जा, तेरा पुत्र जीवित है।”: उस मनुष्य ने यीशु की कही हुई बात की प्रतीति की, और चला गया।
51 वह मार्ग में जा रहा था, कि उसके दास उससे आ मिले और कहने लगे, “कि तेरा लड़का जीवित है।”
52 उसने उनसे पूछा, कि किस घड़ी वह अच्छा होने लगा? उन्होंने उससे कहा, “कल सातवें घण्टे में उसका ज्वर उतर गया।”
53 तब पिता जान गया, कि यह उसी घड़ी हुआ जिस घड़ी यीशु ने उससे कहा, “तेरा पुत्र जीवित है,” और उसने और उसके सारे घराने ने विश्वास किया।
54 यह दूसरा आश्चर्यकर्म था, जो यीशु ने यहूदिया से गलील में आकर दिखाया।।
अध्याय 5
1 इन बातों के पश्चात्पीछे यहूदियों का एक पर्व पब्र्ब हुआ, और यीशु यरूशलेम को गया।।
2 यरूशलेम में भेड़-फाटक के पास एक कुण्ड है जो इब्रानी भाषा में बेतहसदा कहलाता है, और उसके पाँच ओसारे हैंं।
3 इन में बहुत से बीमार, अन्धे, लंगड़े और सूखे अंगवाले (पानी के हिलने की आशा में) पड़े रहते थे।
4 (क्योंकि निक्ति समय पर परमेश्वर के स्वर्गदूत कुण्ड में उतरकर पानी को हिलाया करते थे: पानी हिलते ही जो कोई पहले उतरता वह चंगा हो जाता था चाहे उसकी कोई बीमारी क्यों न हो।)
5 वहाँ एक मनुष्य था, जो अड़तीस वर्ष से बीमारी में पड़ा था।
6 यीशु ने उसे पड़ा हुआ देखकर और जानकर कि वह बहुत दिनों से इस दशा में पड़ा है, उससे पूछा, “क्या तू चंगा होना चाहता है?”
7 उस बीमार ने उसको उत्तर दिया, कि “हे प्रभु, मेरे पास कोई मनुष्य नहीं, कि जब पानी हिलाया जाए, तो मुझे कुण्ड में उतारे; परन्तु मेरे पहुँचते पहुँचते दूसरा मुझ से पहले उतर जाता पड़ता है।”
8 यीशु ने उससे कहा, “उठ, अपनी खाट उठाकर चल फिर।”
9 वह मनुष्य तुरन्त चंगा हो गया, और अपनी खाट उठाकर चलने फिरने लगा।
10 वह सब्त का दिन था। इसलिये यहूदी उससे, जो चंगा हुआ था, कहने लगे, “कि आज तो सब्त का दिन है, तुझे खाट उठानी उचित्त नहीं।”
11 उसने उन्हें उत्तर दिया, “कि जिस ने मुझे चंगा किया, उसी ने मुझ से कहा, अपनी खाट उठाकर चल फिर।”
12 उन्होंने उससे पूछा, “वह कौन मनुष्य है जिस ने तुझ से कहा, ‘खाट उठा और,कर चल फिर’?”
13 परन्तु जो चंगा हो गया था, वह नहीं जानता था वह कौन है; क्योंकि उस जगह में भीड़ होने के कारण यीशु वहाँ से हट गया था।
14 इन बातों के बाद वह यीशु को मन्दिर में मिला, तब उस न उससे कहा, “देख, तू तो चंगा हो गया है; फिर से पाप मत करना, ऐसा न हो कि इस से कोई भारी विपत्ति तुझ पर आ पड़े।”
15 उस मनुष्य ने जाकर यहूदियों से कह दिया, कि जिस ने मुझे चंगा किया, वह यीशु है।
16 इस कारण यहूदी यीशु को सताने लगे, क्योंकि वह ऐसे ऐसे काम सब्त के दिन करता था।
17 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “कि मेरा पिता अब तक काम करता है, और मैं भी काम करता हूँ।”
18 इस कारण यहूदी और भी अधिक उसके मार डालने का प्रयत्न करने लगे, कि वह न केवल सब्त के दिन की विधि को तोड़ता, परन्तु परमेश्वर को अपना पिता कह कर, अपने आप को परमेश्वर के तुल्य ठहराता था।।
19 इस पर यीशु ने उनसे कहा, मैं तुम से सच सच कहता हूँ, पुत्र आप से कुछ नहीं कर सकता, केवल वह जो पिता को करते देखता है, क्योंकि जिन जिनकामों को वह करता है उन्हें पुत्र भी उसी रीति से करता है।
20 क्योंकि पिता पुत्र से प्रीति रखता है और जो जो काम वह आप करता है, वह सब उसे दिखाता है; और वह इन से भी बड़े काम उसे दिखाएगा, ताकि तुम अचम्भा करो।
21 क्योकि जैसा पिता मरे हुओं को उठाता और जिलाता है, वैसा ही पुत्र भी जिन्हें चाहता है उन्हें जिलाता है।
22 और पिता किसी का न्याय भी नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है,।
23 इसलिये कि सब लोग जैसे पिता का आदर करते हैं वैसे ही पुत्र का भी आदर करें: जो पुत्र का आदर नहीं करता, वह पिता का जिस ने उसे भेजा है, आदर नहीं करता।
24 मैं तुम से सच सच कहता हूँ, जो मेरा वचन सुनकर मेरे भेजनेवाले पर विश्वास की प्रतीति करता है, अनन्त जीवन उसका है, और उस पर दंड की आज्ञा नहीं होती** परन्तु वह मृत्यु से पार होकर जीवन में प्रवेश कर चुका है।
25 “मैं तुम से सच सच कहता हूँ, वह समय आता है, और अब है, जिसमें मृतक परमेश्वर के पुत्र का शब्द सुनेंगे, और जो सुनेंगे वे जीएँंगे।
26 क्योंकि जिस रीति से पिता अपने आप में जीवन रखता है, उसी रीति से उसने पुत्र को भी यह अधिकार दिया है कि अपने आप में जीवन रखे;।
27 वरन् उसे न्याय करने का भी अधिकार दिया है, इसलिये कि वह मनुष्य का पुत्र है।
28 इस से अचम्भा मत करो;, क्योंकि वह समय आता है, कि जितने कब्रों में हैं, उसका शब्द सुनकर निकलेंगे।
29 जिन्हों ने भलाई की है वे जीवन के पुनरूत्थान5 के लिये जी उठेंगे और जिन्हों ने बुराई की है वे दंड के पुनरूत्थान के लिये जी उठेंगे।
30 “मैं अपने आप से कुछ नहीं कर सकता; जैसा सुनता हूँ, वैसा न्याय करता हूँ, और मेरा न्याय सच्चा है; क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, परन्तु अपने भेजनेवाले की इच्छा चाहता हूँ।
31 यदि मैं आप ही अपनी गवाही दूँ ; तो मेरी गवाही सच्ची नहीं।
32 एक और है जो मेरी गवाही देता है, और मैं जानता हुँ कि मेरी जो गवही वह देता है, वह सच्ची है।
33 तुम ने यूहन्ना से पुछवाया और उसने सच्चाई की गवाही दी है।
34 परन्तु मैं अपने विषय में मनुष्य की गवाही नहीं चाहता; तौभी मैं ये बातें इसलिये कहता हूँ, कि तुम्हें उद्धार मिले।
35 वह जो जलता और चमकता हुआ दीपक था; और तुम्हें कुछ देर तक उसकी ज्योति में, मगन होना अच्छा लगा।
36 परन्तु मेरे पास जो गवाही है वह यूहन्ना की गवाही से बड़ी है: क्योंकि जो काम पिता ने मुझे पूरा करने को सौंपा है अर्थात् यही काम जो मैं करता हूँ, वे मेरे गवाह हैं, कि पिता ने मुझे भेजा है।
37 और पिता जिस ने मुझे भेजा है, उसी ने मेरी गवाही दी है: तुम ने न कभी उसका शब्द सुना, और न उसका रूप देखा है;।
38 और उसके वचन को मन में स्थिर नहीं रखते, क्योंकि जिसे उसने भेजा तुम उसकी विश्वासप्रतीति नहीं करते।
39 तुम पवित्रशास्त्र में ढूंढ़तेढूँढ़ते** हो, क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है, और यह वही है, जो मेरी गवाही देता है;।
40 फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते।
41 मैं मनुष्यों से आदर नहीं चाहता।
42 परन्तु मैं तुम्हें जानता हूँ, कि तुम में परमेश्वर का प्रेम नहीं।
43 मैं अपने पिता के नाम से आया हूँ, और तुम मुझे ग्रहण नहीं करते; यदि कोई और अपने ही नाम से आए, तो उसे ग्रहण कर लोगे।
44 तुम जो एक दूसरे से आदर चाहते हो और वह आदर जो एकमात्रअद्वैत परमेश्वर की ओर से है, नहीं चाहते, किस प्रकार विश्वास कर सकते हो?
45 यह न समझो, कि मैं पिता के साम्हने तुम पर दोष लगाऊंगा: तुम पर दोष लगानेवाला तो है, अर्थात् मूसा जिस पर तुम ने भरोसा रखा है।
46 क्योंकि यदि तुम मूसा काकी विश्वासप्रतीति करते, तो मेरी भी विश्वासप्रतीति करते, इसलिये कि उसने मेरे विषय में लिखा है।
47 परन्तु यदि तुम उसकी लिखी हुई बातों की विश्वासप्रतीति नहीं करते, तो मेरी बातों की क्योंकर विश्वासप्रतीति करोगे।”।
अध्याय 6
1 इन बातों के बाद यीशु गलील की झील अर्थात् तिबिरियास की झील के पास गया।
2 और एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली क्योंकि जो आश्चर्य कर्म5 वह बीमारों पर दिखाता था वे उनको देखते थे।
3 तब यीशु पहाड़ पर चढ़कर अपने चेलों के साथ वहाँ बैठा।
4 और यहूदियों के फसह के पब्र्बपर्व निकट था।
5 तब यीशु ने अपनी आँंखे उठाकर एक बड़ी भीड़ को अपने पास आते देखा, और फिलिप्पुस से कहा, “कि हम इन के भोजन के लिये कहांकहाँ से रोटी मोल लाएं?”
6 परन्तु उसने यह बात उसे परखने के लिये कही; क्योंकि वह आप जानता था कि मैं क्या करेगाकरूँगा।
7 फिलिप्पुस ने उसको उत्तर दिया, “कि दो सौ दीनार** की रोटी उनकेलिये पूरी भी न होंगी कि उन में से हर एक को थोड़ी थोड़ी मिल जाए।”
8 उसके चेलों में से शमौन पतरस के भाई अन्द्रियास ने उससे कहा,।
9 “यहाँ एक लड़का है जिसके पास जव की पाँच रोटी और दो मछलियाँ हैं, परन्तु इतने लोगों के लिये वे क्या हैं।”
10 यीशु ने कहा, “कि लोगों को बैठा दो।” उस जगह बहुत घास थी: तब वे लोग जो गिनती में लगभग पाँच हजार के थे, बैठ गए:
11 तब यीशु ने रोटियाँ लीं, और धन्यवाद करके बैठनेवालों को बाँट दी: और वैसे ही मछलियों में से जितनी वे चाहते थे बाँट दिया।
12 जब वे खाकर तृप्त हो गए तो उसने अपने चेलों से कहा, “कि बचे हुए टुकड़े बटोर लो, कि कुछ फेंका7 न जाए।”
13 सो उन्होंने बटोरा, और जौजव की पाँच रोटियों के टुकड़े जो खानेवालों से बच रहे थे उनकी बारह टोकरियाँ भरीं।
14 तब जो आश्चर्य कर्म उसने कर दिखाया उसे वे लोग देखकर कहने लगे; कि वह भविष्यद्वक्ता जो जगत में आनेवाला था निश्चय यही है।
15 यीशु यह जानकर कि वे मुझे राजा बनाने के लिये आकर पकड़ना चाहते हैं, फिर पहाड़ पर अकेला चला गया।
16 फिर जब संध्या हुई, तो उसके चेले झील के किनारे गए,।
17 और नाव पर चढ़कर झील के पार कफरनहूम को जाने लगे: उस समय अन्धेरा हो गया था, और यीशु अभी तक उनके पास नहीं आया था।
18 और आँधी आन्धी के कारण झील में लहरें उठने लगीं।
19 सो जब वे खेते खेते तीन चार मील के लगभग निकल गए, तो उन्होंने यीशु को झील पर चलते, और नाव के निकट आते देखा, और डर गए।
20 परन्तु उसने उनसे कहा, “कि मैं हूँ; डरो मत।”
21 सो वे उसे नाव पर चढ़ा लेने के लिये तैयार हुए और तुरन्त वह नाव उसे स्थान पर जा पहुंचीपहुँची जहाँ ं वह जाते थे।
22 दूसरे दिन उस भीड़ ने, जो झील के पार खड़ी थी, यह देखा, कि यहाँ एक को छोड़कर और कोई छोटी नाव न थी, और यीशु अपने चेलों के साथ उस नाव पर न चढ़ा, परन्तु केवल उसके चेले चले गए थे।
23 (तौभी और छोटी नावें तिबिरियास से उस जगह के निकट आई, जहांजहाँ उन्होंने प्रभु के धन्यवाद करने के बाद रोटी खाई थी।)
24 सो जब भीड़ ने देखा, कि यहाँ न यीशु है, और न उसके चेले, तो वे भी छोटी छोटी नावों पर चढ़ के यीशु को ढूंढ़तेढूँढ़ते हुए कफरनहूम को पहुंचेपहँचे।
25 और झील के पार उससे मिलकर कहा, “हे रब्बी, तू यहाँ कब आया?”
26 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “कि मैं तुम से सच सच कहता हूँ, तुम मुझे इसलिये नहीं ढूंढ़तेढूँढ़ते हो कि तुम ने अचम्भित काम देखे, परन्तु इसलिये कि तुम रोटियाँ खाकर तृप्त हुए।
27 नाशवामानन् भोजन के लिये परिश्रम न करो, परन्तु उस भोजन के लिये जो अनन्त जीवन तक ठहरता है, जिसे मनुष्य का पुत्र तुम्हें देगा, क्योंकि पिता, अर्थात् परमेश्वर ने उसी पर छाप कर दी है।”
28 उन्होंने उससे कहा, “परमेश्वर के काय्र्यकार्य करने के लिये हम क्या करें?”
29 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया,; “परमेश्वर का कार्य यह है, कि तुम उस पर, जिसे उसने भेजा है, विश्वास करो।”
30 तब उन्होंने उससे कहा, “फिर तू कौन सा चिन्ह दिखाता है कि हम उसे देखकर तेरी प्रतीति करें?, तू कौन सा काम दिखाता है?
31 हमारे बापदादों ने जंगल में मन्ना** खाया; जैसा लिखा है,; ‘कि उसने उन्हें खाने के लिये स्वर्ग से रोटी दी’।”
32 यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम से सच सच कहता हूँ कि मूसा ने तुम्हें वह रोटी स्वर्ग से न दी, परन्तु मेरा पिता तुम्हें सच्ची रोटी स्वर्ग से देता है।
33 क्योंकि परमेश्वर की रोटी वही है, जो स्वर्ग से उतरकर जगत को जीवन देती है।”
34 तब उन्होंने उससे कहा, “हे प्रभु, यह रोटी हमें सर्वदा दिया कर।”
35 यीशु ने उनसे कहा, “जीवन की रोटी मैं हूँ: जो मेरे पास आएगा वह कभी भूखा न होगा और जो मुझ पर विश्वास करेगा, वह कभी प्यासापियासा न होगा।
36 परन्तु मैं ने तुम से कहा, कि तुम ने मुझे देख भी लिया है, तोभी विश्वास नहीं करते।
37 जो कुछ पिता मुझे देता है वह सब मेरे पास आएगा, और जो कोई मेरे पास आएगा उसे मैं कभी न निकालूँंगा।
38 क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, वरन् अपने भेजनेवाले की इच्छा पूरी करने के लिये स्वर्ग से उतरा हूँ।
39 और मेरे भेजनेवाले की इच्छा यह है कि जो कुछ उसने मुझे दिया है, उसमें से मैं कुछ न खोऊँ ं परन्तु उसे अंतिम दिन फिर जिला उठाऊँं।
40 क्योंकि मेरे पिता की इच्छा यह है, कि जो कोई पुत्र को देखे, और उस पर विश्वास करे, वह अनन्त जीवन पाए; और मैं उसे अंतिम दिन फिर जिला उठाऊँंगा।”
41 सो यहूदी उस पर कुड़कुड़ाने लगे, इसलिये कि उसने कहा था,; “ कि जो रोटी स्वर्ग से उतरी, वह मैं हूँ।”
42 और उन्होंने कहा,; “क्या यह यूसुफ का पुत्र यीशु नहीं, जिसके माता- पिता को हम जानते हैं? तो वह क्योंकर कहता है कि मैं स्वर्ग से उतरा हूँ?”।
43 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “कि आपस में मत कुड़कुड़ाओ ।
44 कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता, जिस ने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले; और मैं उसको अंतिम दिन फिर जिला उठाऊँंगा।
45 भविष्यद्वक्ताओं के लेखों में यह लिखा है, ‘कि वे सब परमेश्वर की ओर से सिखाए हुए होंगे।’ जिस किसी ने पिता से सुना और सीखा है, वह मेरे पास आता है।
46 यह नहीं, कि किसी ने पिता को देखा परन्तु जो परमेश्वर की ओर से है, केवल उसी ने पिता को देखा है।
47 मैं तुम से सच सच कहता हूँ, कि जो कोई विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसी का है।
48 जीवन की रोटी मैं हूँ।
49 तुम्हारे बापदादों ने जंगल में मन्ना खाया और मर गए।
50 यह वह रोटी है जो स्वर्ग से उतरती है ताकि मनुष्य उसमें से खाए और न मरे।
51 जीवन की रोटी जो स्वर्ग से उतरी मैं हूँ। यदि कोई इस रोटी में से खाए, तो सर्वदा जीवित रहेगा; और जो रोटी मैं जगत के जीवन के लिये दूँगा, वह मेरा माँसमांस है।”
52 इस पर यहूदी यह कहकर आपस में झगड़ने लगे, “कि यह मनुष्य क्योंकर हमें अपना माँसमांस खाने को दे सकता है?”
53 यीशु ने उनसे कहा,; “मैं तुम से सच सच कहता हूँ जब तक मनुष्य के पुत्र का माँसमांस न खाओ, और उसका लोहू न पीओ, तुम में जीवन नहीं।
54 जो मेरा माँसमांस खाता, और मेरा लोहू पीता हे, अनन्त जीवन उसी का है, और मैं अंतिम दिन फिर उसे जिला उठाऊँंगा।
55 क्योंकि मेरा माँसमांस वास्तव में खाने की वस्तु है और मेरा लोहू वास्तव में पीने की वस्तु है।
56 जो मेरा माँसमांस खाता और मेरा लोहू पीता है, वह मुझ में स्थिर बना रहता है, और मैं उसमें।
57 जैसा जीवते पिता ने मुझे भेजा और मैं पिता के कारण जीवित हूँ वैसा ही वह भी जो मुझे खाएगा मेरे कारण जीवित रहेगा।
58 जो रोटी स्वर्ग से उतरी यही है, बापदादों के समान नहीं कि खाया, और मर गए: जो कोई यह रोटी खाएगा, वह सर्वदा जीवित रहेगा।”
59 ये बातें उसने कफरनहूम के एक आराधनालय में उपदेश देते समय कहीं।
60 इसलिये उसके चेलों में से बहुतों ने यह सुनकर कहा, “ कि यह कठोर बात नागवार** है; इसे कौन सुन सकता है?”
61 यीशु ने अपने मन में यह जान कर कि मेरे चेले आपस में इस बात पर कुड़कुड़ाते हैं, उनसे पूछा, “क्या इस बात से तुम्हें ठोकर लगती है?
62 और यदि तुम मनुष्य के पुत्र को जहांजहाँ वह पहले था, वहाँ ऊपर जाते देखोगे, तो क्या होगा?
63 आत्मा तो जीवनदायक है, शरीर से कुछ लाभ नहीं: जो बातें मैं ने तुम से कहीं हैं वे आत्मा है, और जीवन भी हैं।
64 परन्तु तुम में से कितने ऐसे हैं जो विश्वास नहीं करते।”: क्योंकि यीशु तो पहले ही से जानता था कि जो विश्वास नहीं करते, वे कौन हैं;? और कौन मुझे पकड़वाएगा।
65 और उसने कहा, “इसी लिये मैं ने तुम से कहा था कि जब तक किसी को पिता की ओर से यह बरदान वरदान न दिया जाए तब तक वह मेरे पास नहीं आ सकता।”
66 इस पर उसके चेलों में से बहुतेरे उल्टे फिर गए और उसके बाद उसके साथ न चले।
67 तब यीशु ने उन बारहों से कहा, “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?”
68 शमौन पतरस ने उसको उत्तर दिया, कि “हे प्रभु, हम किस के पास जाएँ? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं।
69 और हम ने विश्वास किया, और जान गए हैं, कि परमेश्वर का पवित्र जन तू ही है।”
70 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या मैं ने तुम बारहों को नहीं चुन लिया? तौभी तुम में से एक व्यक्तिव्यिक्त शैतान** है।”
71 यह उसने शमौन इस्करियोती के पुत्र यहूदाहयहूदा के विषय में कहा, क्योेंकिक्योंकि यही जो उन बारहों में से था, उसे पकड़वाने को था।।
अध्याय 7
1 इन बातों के बाद यीशु गलील में फिरता रहा, क्योंकि यहूदी उसे मार डालने का यत्न कर रहे थे, इसलिये वह यहूदिया में फिरना न चाहता था।
2 और यहूदियों का मण्डपों झोपड़ियों का पर्वपब्र्ब निकट था।
3 इसलिये उसके भाइयों ने उससे कहा, “यहाँ से कूच करके यहूदिया में चला जा, कि जो काम तू करता है, उन्हें तेरे चेले भी देखें।
4 क्योंकिं ऐसा कोई न होगा जो प्रसिद्ध होना चाहे, और छिपकर काम करे: यदि तू यह काम करता है, तो अपने आप कोतई जगत पर प्रगट कर।”
5 क्योंकि उसके भाई भी उस पर विश्वास नहीं करते थे।
6 तब यीशु ने उनसे कहा, “मेरा समय अभी नहीं आया; परन्तु तुम्हारे लिये सब समय है।
7 जगत तुम से बैर नहीं कर सकता, परन्तु वह मुझ से बैर करता है, क्योंकि मैं उसके विरोध में यह गवाही देता हूँ, कि उसके काम बुरे हैं।
8 तुम पब्र्बपर्व में जाओ;: मैं अभी इस पब्र्बपर्व में नहीं जाता,; क्योंकि अभी तक मेरा समय पूरा नहीं हुआ।”
9 वह उनसे ये बातें कहकर गलील ही में रह गया।।
10 परन्तु जब उसके भाई पब्र्बपर्व में चले गए, तो वह आप ही प्रगट में नहीं, परन्तु मानों गुप्त होकर गया।
11 सो यहूदी पब्र्बपर्व में उसे यह कहकर ढूँंढ़ने लगे कि वह कहाँं है?
12 और लोगों में उसके विषय चुपके चुपके बहुत सी बातें हुईं: कितने कहते थे,; “वह भला मनुष्य है।”: और कितने कहते थे,; “नहीं, वह लोगों को भरमाता है।”
13 तौभी यहूदियों के भय के मारे कोई व्यिक्तव्यक्ति उसके विषय में खुलकर नहीं बोलता था।
14 और जब पब्र्बपर्व के आधे दिन बीत गए; तो यीशु मन्दिर में जाकर उपदेश करने लगा।
15 तब यहूदियों ने अचम्भा करके कहा, कि इसे बिन पढ़े विद्या कैसे आ गई?
16 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, कि “मेरा उपदेश मेरा नहीं, परन्तु मेरे भेजनेवाले का है।
17 यदि कोई उसकी इच्छा पर चलना चाहे, तो वह इस उपदेश के विषय में जान जाएगा कि वह परमेश्वर की ओर से है, या मैं अपनी ओर से कहता हूँ।
18 जो अपनी ओर से कुछ कहता है, वह अपनी ही बढ़ाई चाहता है; परन्तु जो अपने भेजनेवाले की बड़ाई चाहता है वही सच्चा है, और उसमें अधर्म नहीं।
19 क्या मूसा ने तुम्हें व्यवस्था नहीं दी? तौभी तुम में से काई व्यवस्था पर नहीं चलता। तुम क्यों मुझे मार डालना चाहते हो?”
20 लोगों ने उत्तर दिया; “कि तुझ में दुष्टात्मा है!; कौन तुझे मार डालना चाहता है?”
21 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “कि मैं ने एक काम किया, और तुम सब अचम्भा करते हो।
22 इसी कारण मूसा ने तुम्हें खतने की आज्ञा दी है (यह नहीं कि वह मूसा की ओर से है परन्तु बाप-दादों से चली आई है), और तुम सब्त के दिन को मनुष्य का खतना करते हो।
23 जब सब्त के दिन मनुष्य का खतना किया जाता है ताकि मूसा की व्यवस्था की आज्ञा टल न जाए, तो तुम मुझ पर क्यों इसलिये क्रोध करते हो, कि मैं ने सब्त के दिन एक मनुष्य को पूरी रीति से चंगा किया।
24 मुँंह देखकर न्याय न चुकाओ, परन्तु ठीक ठीक न्याय चुकाओ।”।
25 तब कितने यरूशलेमवासीमी कहने लगे,; “क्या यह वह नहीं, जिसके मार डालने का प्रयत्न किया जा रहा है?।
26 परन्तु देखो, वह तो खुल्लमखुल्ला बातें करता है और कोई उससे कुछ नहीं कहता; क्या सम्भव है कि सरदारों ने सच सच जान लिया है; कि यही मसीह है?।
27 इस को तो हम जानते हैं, कि यह कहाँं का है; परन्तु मसीह जब आएगा, तो कोई न जानेगा कि वह कहाँं का है।”
28 तब यीशु ने मन्दिर में उपदेश देते हुए पुकार के कहा, “तुम मुझे जानते हो और यह भी जानते हो कि मैं कहाँं का हूँ: मैं तो आप से नहीं आया परन्तु मेरा भेजनेवाला सच्चा है, उसको तुम नहीं जानते।
29 मैं उसे जानता हूँ; क्योंकि मैं उसकी ओर से हूँ और उसी ने मुझे भेजा है।”
30 इस पर उन्होंने उसे पकड़ना चाहा तौभी किसी ने उस पर हाथ न डाला, क्योंकि उसका समय अब तक न आया था।
31 और भीड़ में से बहुतेरों ने उस पर विश्वास किया, और कहने लगे, कि मसीह जब आएगा, तो क्या इस से अधिक आश्चर्यकर्म दिखाएगा जो इस ने दिखाए?
32 फरीसियों ने लोगों को उसके विषय में ये बातें चुपके चुपके करते सुना; और महायाजकों और फरीसियों ने उसके पकड़ने को सिपाही भेजे।
33 इस पर यीशु ने कहा, “मैं थोड़ी देर तक और तुम्हारे साथ हूँ; तब अपने भेजनेवाले के पास चला जाऊँगा जाऊंगा।
34 तुम मुझे ढूँंढ़ोगे, परन्तु नहीं पाओगे; और जहांजहाँ मैं हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते।”
35 यहूदियों ने आपस में कहा, “यह कहाँं जाएगा, कि हम इसे न पाएँंगे?: क्या वह उनके पास जाएगा, जो यूनानियों में तित्तर बित्तर होकर रहते हैं, और यूनानियों को भी उपदेश देगा?
36 यह क्या बात है जो उसने कही, कि कि ‘तुम मुझे ढूँंढ़ोगे, परन्तु न पाओगे: और जहांजहाँ मैं हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते’?”
37 फिर पब्र्बपर्व के अंतिम दिन, जो मुख्य दिन है, यीशु खड़ा हुआ और पुकार कर कहा, “यदि कोई प्यासा पियासा हो तो मेरे पास आए औरआकर पीए।
38 जो मुझ पर विश्वास करेगा, जैसा पवित्र शास्त्र में आया है, ‘उसके हृदय** में से जीवन के जल की नदियाँनदियां बह निकलेंगी’।”
39 उसने यह वचन उस आत्मा के विषय में कहा, जिसे उस पर विश्वास करनेवाले पाने पर थे; क्योंकि आत्मा अब तक न उतरा था,; क्योंकि यीशु अब तक अपनी महिमा को न पहुँचा पहुंचा था।
40 तब भीड़ में से किसी किसी ने ये बातें सुन कर कहा, “सचमुच यही वह भविष्यद्वक्ता है।”
41 औरों ने कहा,; “यह मसीह है,” परन्तु किसी ने कहा,; “क्यों? क्या मसीह गलील से आएगा?
42 क्या पवित्र शास्त्र में नहीं आया, कि मसीह दाऊद के वंश से और बैतलहम गाँव से आएगा, जहांजहाँ दाऊद रहता था?”
43 सो उसके कारण लोगों में फूट पड़ी।
44 उन में से कितने उसे पकड़ना चाहते थे, परन्तु किसी ने उस पर हाथ न डाला।।
45 तब सिपाही महायाजकों और फरीसियों के पास आए, और उन्होंने उनसे कहा, “तुम उसे क्यों नहीं लाए?”
46 सिपाहियों ने उत्तर दिया, कि किसी मनुष्य ने कभी ऐसी बातें न की।
47 फरीसियों ने उनको उत्तर दिया, “क्या तुम भी भरमाए गए हो?
48 क्या सरदारों या फरीसियों में से किसी ने भी उस पर विश्वास किया है?
49 परन्तु ये लोग जो व्यवस्था नहीं जानते, शास्रापित हैं।”
50 नीकुदेमुस ने, (जो पहले उसके पास आया था और उन में से एक था), उनसे कहा,।
51 “क्या हमारी व्यवस्था किसी व्यिक्तव्यक्ति को जब तक पहले उसकी सुनकर जान न ले, कि वह क्या करता है;; दोषी ठहराती है?”
52 उन्होंने उसे उत्तर दिया,; “क्या तू भी गलील का है? ढूँंढ़ और देख, कि गलील से कोई भविष्यद्वक्ता प्रगट नहीं होने का।”
53 तब** सब कोई अपने अपने घर चले को गए।।
अध्याय 8
1 परन्तु यीशु जैतून के पहाड़ पर गया।
2 और भोर को फिर मन्दिर में आया, और सब लोग उसके पास आए; और वह बैठकर उन्हें उपदेश देने लगा।
3 तब शास्त्री और फरीसी एक स्त्री को लाए, जो व्यभिचार में पकड़ी गई थी, और उसको बीच में खड़ी करके यीशु से कहा,।
4 “हे गुरू, यह स्त्री व्यभिचार करते ही पकड़ी गई है।
5 व्यवस्था में मूसा ने हमें आज्ञा दी है कि ऐसी स्त्रियों कों पत्थरवाह करें: सो तू इस स्त्री के विषय में क्या कहता है?”
6 उन्होंने उसको परखने के लिये यह बात कही ताकि उस पर दोष लगाने के लिये कोई बात पाएँपाएं, परन्तु यीशु झुककर उँंगली से भूमि पर लिखने लगा।
7 जब वे उससे पूछते रहे, तो उसने सीधे होकर उनसे कहा, “कि तूम में जो निष्पाप हो, वही पहले उसको पत्थर मारे।”
8 और फिर झुककर भूमि पर उँगली उंगली से लिखने लगा।
9 परन्तु वे यह सुनकर बड़ों से लेकर छोटों तक एक एक करके निकल गए, और यीशु अकेला रह गया, और स्त्री वहीं बीच में खड़ी रह गई।
10 यीशु ने सीधे होकर उससे कहा, “हे नारी, वे कहांकहाँ गए? क्या किसी ने तुझ पर दंड की आज्ञा न दी?”।
11 उसने कहा, “हे प्रभु, किसी ने नहीं।”: यीशु ने कहा, “मैं भी तुझ पर दंड की आज्ञा नहीं देता; जा, और फिर पाप न करना।”।
12 तब यीशु ने फिर लोगों से कहा, “जगत की ज्योति मैं हूँ; जो मेरे पीछे हो लेगा, वह अन्धकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा।”
13 फरीसियों ने उससे कहा; “तू अपनी गवाही आप देता है; तेरी गवाही ठीक नहीं।”
14 यीशु ने उनको उत्तर दिया,; “कि यदि मैं अपनी गवाही आप देता हूँ, तौभी मेरी गवाही ठीक है, क्योंकि मैं जानता हूँ, कि मैं कहाँ ं से आया हूँ और कहाँ कहां को जाता हूँ? परन्तु तुम नहीं जानते कि मैं कहाँ कहां से आता हूँ या कहाँ कहां को जाता हूँ।
15 तुम शरीर के अनुसार न्याय करते हो; मैं किसी का न्याय नहीं करता।
16 और यदि मैं न्याय करूँ भी, तो मेरा न्याय सच्चा है; क्योंकि मैं अकेला नहीं, परन्तु मैं हूँ, और पिता है जिस ने मुझे भेजा।
17 और तुम्हारी व्यवस्था में भी लिखा है; कि दो जनों की गवाही मिलकर ठीक होती है।
18 एक तो मैं आप अपनी गवाही देता हूँ, और दूसरा पिता मेरी गवाही देता है जिस ने मुझे भेजा।”
19 उन्होंने उससे कहा, “तेरा पिता कहांकहाँ है?” यीशु ने उत्तर दिया, “कि न तुम मुझे जानते हो, न मेरे पिता को, यदी मुझे जानते, तो मेरे पिता को भी जानते।”
20 ये बातें उसने मन्दिर में उपदेश देते हुए भण्डार घर में कहीं, और किसी ने उसे न पकड़ा; क्योंकि उसका समय अब तक नहीं आया था।।
21 उसने फिर उनसे कहा, “मैं जाता हूँ, और तुम मुझे ढूँंढ़ोगे और अपने पाप में मरोगे: जहांजहाँ मैं जाता हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते।”
22 इस पर यहूदियों ने कहा, “क्या वह अपने आप को मार डालेगा, जो कहता है,; ‘कि जहांजहाँ मैं जाता हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते’?”
23 उसने उनसे कहा, “तुम नीचे के हो, मैं ऊपर का हूँ; तुम संसार के हो, मैं संसार का नहीं।
24 इसलिये मैं ने तुम से कहा, कि तुम अपने पापों में मरोगे; क्योंकि यदि तुम विश्वास न करोगे कि मैं वहीं हूँ, तो अपने पापों में मरोगे।”
25 उन्होंने उससे कहा, “तू कौन है?” यीशु ने उनसे कहा, “वही** हूँ जो प्रारम्भ से तुम से कहता आया हूँ।
26 तुम्हारे विषय में मुझे बहुत कुछ कहना और निर्णय करना है परन्तु मेरा भेजनेवाला सच्चा है; और जो मैं ने उससे सुना है, वही जगत से कहता हूँ।”
27 वे न समझे कि हम से पिता के विषय में कहता है।
28 तब यीशु ने कहा, “कि जब तुम मनुष्य के पुत्र को ऊंचे पर चढ़ाओगे, तो जानोगे कि मैं वही हूँ, और अपने आप से कुछ नहीं करता, परन्तु जैसे मेरे पिता ने मुझे सिखाया, वैसे ही ये बातें कहता हूँ।
29 और मेरा भेजनेवाला मेरे साथ है; उसने मुझे अकेला नहीं छोड़ा; क्योंकि मैं सर्वदा वही काम करता हूँ, जिस से वह प्रसन्न होता है।”
30 वह ये बातें कह ही रहा था, कि बहुतेरों ने उस पर विश्वास किया।।
31 तब यीशु ने उन यहूदियों से जिन्हों ने उनकी विश्वास प्रतीति की थी, कहा, “यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे।
32 और सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।”
33 उन्होंने उसको उत्तर दिया,; “कि हम तो इब्राहीम के वंश से हैं, और कभी किसी के दास नहीं हुए; फिर तू क्योंकर कहता है, कि तुम स्वतंत्र हो जाओगे?”
34 यीशु ने उनको उत्तर दिया,; “मैं तुम से सच सच कहता हूँ कि जो कोई पाप करता है, वह पाप का दास है।
35 और दास सदा घर में नहीं रहता; पुत्र सदा रहता है।
36 इसलिए सो यदि पुत्र तुम्हें स्वतंत्र करेगा, तो सचमुच तुम स्वतंत्र हो जाओगे।
37 मैं जानता हूँ कि तुम इब्राहीम के वंश से हो; तौभी मेरा वचन तुम्हारे हृदय** में जगह नहीं पाता, इसलिये तुम मुझे मार डालना चाहते हो।
38 मैं वही कहता हूँ, जो अपने पिता के यहाँ देखा है; और तुम वही करते रहते हो जो तुमने अपने पिता से सुना है।”
39 उन्होंने उनको उत्तर दिया, “कि हमारा पिता तो इब्राहीम है।”: यीशु ने उनसे कहा,; “यदि तुम इब्राहीम के सन्तान होते, तो इब्राहीम के समान काम करते।
40 परन्तु अब तुम मुझे ऐसे मनुष्य को मार डालना चाहते हो, जिस ने तुम्हें वह सत्य वचन बताया जो परमेश्वर से सुना, यह तो इब्राहीम ने नहीं किया था।
41 तुम अपने पिता के समान काम करते हो”: उन्होंने उससे कहा, “हम व्यभिचार से नहीं जन्मेमें,; हमारा एक पिता है अर्थात् परमेश्वर।”
42 यीशु ने उनसे कहा,; “यदि परमेश्वर तुम्हारा पिता होता, तो तुम मुझ से प्रेम रखते; क्योंकि मैं परमेश्वर में से निकल कर आया हूँ; मैं आप से नहीं आया, परन्तु उसी ने मुझे भेजा।
43 तुम मेरी बात क्यों नहीं समझते? इसलिये कि मेरा वचन सुन नहीं सकते।
44 तुम अपने पिता शैतान** से हो, और अपने पिता की लालसाओं को पूरा करना चाहते हो। वह तो आरम्भ से हत्यारा है, और सत्य पर स्थिर न रहा, क्योंकि सत्य उसमें है ही नहीं: जब वह झूठ बोलता, तो अपने स्वभाव ही से बोलता है; क्योंकि वह झूठा है, वरन्झूठ का पिता है।
45 परन्तु मैं जो सच बोलता हूँ, इसीलिये तुम मेरी विश्वासप्रतीति नहीं करते।
46 तुम में से कौन मुझे पापी ठहराता है? और यदि मैं सच बोलता हूँ, तो तुम मेरी प्रतीति क्यों नहीं करते?
47 जो परमेश्वर से होता हे, वह परमेश्वर की बातें सुनता है; और तुम इसलिये नहीं सुनते कि परमेश्वर की ओर से नहीं हो।”
48 यह सुन यहूदियों ने उससे कहा,; “क्या हम ठीक नहीं कहते, कि तू सामरी है, और तुझ में दुष्टात्मा है?”
49 यीशु ने उत्तर दिया, “कि मुझ में दुष्टात्मा नहीं; परन्तु मैं अपने पिता का आदर करता हूँ, और तुम मेरा निरादर करते हो।
50 परन्तु मैं अपनी प्रतिष्ठा नहीं चाहता, हाँं, एक तो है जो चाहता है, और न्याय करता है।
51 मैं तुम से सच सच कहता हूँ, कि यदि कोई व्यिक्तव्यक्ति मेरे वचन पर चलेगा, तो वह अनन्त काल तक मृत्यु को न देखेगा।”
52 यहूदियों ने उससे कहा, “ कि अब हम ने जान लिया कि तुझ में दुष्टात्मा है: इब्राहीम मर गया, और भविष्यद्वक्ता भी मर गए हैं और तू कहता है, ‘कि यदि कोई मेरे वचन पर चलेगा तो वह अनन्त काल तक मृत्यु का स्वाद न चखेगा।’
53 हमारा पिता इब्राहीम तो मर गया, क्या तू उससे बड़ा है? और भविष्यद्वक्ता भी मर गए, तू अपने आप को क्या ठहराता है।”
54 यीशु ने उत्तर दिया,; “यदि मैं आप अपनी महिमा करूँ, तो मेरी महिमा कुछ नहीं, परन्तु मेरी महिमा करनेवाला मेरा पिता है, जिसे तुम कहते हो, कि वह हमारा परमेश्वर है।
55 और तुम ने तो उसे नहीं जाना: परन्तु मैं उसे जानता हूँ; और यदि कहूँ कि मैं उसे नहीं जानता, तो मैं तुम्हारी नाईं झूठा ठहरूंगा: परन्तु मैं उसे जानता, और उसके वचन पर चलता हूँ।
56 तुम्हारा पिता इब्राहीम मेरा दिन देखने की आशा से बहुत मगन था; और उसने देखा, और आनन्द किया।”
57 यहूदियों ने उससे कहा, “अब तक तू पचास वर्ष का नहीं,; फिर भी तू ने इब्राहीम को देखा है?”
58 यीशु ने उनसे कहा,; “मैं तुम से सच सच कहता हूँ,; कि पहले इसके कि इब्राहीम उत्पन्न हुआ, मैं हूँ।”
59 तब उन्होंने उसे मारने के लिये पत्थर उठाए, परन्तु यीशु छिपकर मन्दिर से निकल गया।।
अध्याय 9
1 फिर जाते हुए उसने एक मनुष्य को देखा, जो जन्म का अन्धा था।
2 और उसके चेलों ने उससे पूछा, “हे रब्बी, किस ने पाप किया था कि यह अन्धा जन्मा, इस मनुष्य ने, या उसके माता पिता ने?”
3 यीशु ने उत्तर दिया, कि “न तो इस ने पाप किया था, न इस के माता पिता ने: परन्तु यह इसलिये हुआ, कि परमेश्वर के काम उसमें प्रगट हों।
4 जिस ने मुझे भेजा है; हमें उसके काम दिन ही दिन में करना अवश्य है: वह रात आनेवाली है जिसमें कोई काम नहीं कर सकता।
5 जब तक मैं जंगल में हूँ, तब तक जगत की ज्योति हूँ।”
6 यह कहकर उसने भूमि पर थूका और उस थूक से मिट्टी सानी, और वह मिट्टी उस अन्धे की आँंखों पर लगाकर।
7 उससे कहा,; “जा, शीलोह के कुण्ड में धो ले”, (जिसका अर्थ भेजा हुआ है) सो उसने जाकर धोया, और देखता हुआ लौट आया।
8 तब पड़ोसी और जिन्हों ने पहले उसे भीख माँगते देखा था, कहने लगे,; “क्या यह वही नहीं, जो बैठा भीख माँगा करता था?”
9 कुछ लोगोंकितनों ने कहा, “यह वही है,”: औरों ने कहा, “नहीं,; परन्तु उसके समान है”: उसने कहा, “मैं वही हूँ।”
10 तब वे उससे पूछने लगे, “तेरी आँंखें क्योंकर खुल गई?”
11 उसने उत्तर दिया, “कि यीशु नाम एक व्यिक्तव्यक्ति ने मिट्टी सानी, और मेरी आँखें आंखों पर लगाकर मुझ से कहा, ‘कि शीलोह में जाकर धो ले,’; सो मैं गया, और धोकर देखने लगा।”
12 उन्होंने उससे पूछा,; “वह कहांकहाँ है?” उसने कहा,; “मैं नहीं जानता।”।
13 लोग उसे जो पहले अन्धा था फरीसियों के पास ले गए।
14 जिस दिन यीशु ने मिट्टी सानकर उसकी आँखें आंखे खोली थी वह सब्त का दिन था।
15 फिर फरीसियों ने भी उससे पूछा; तेरी आँखें आंखें किस रीति से खुल गई? उसने उनसे कहा,; “उसने मेरी आँखें आंखो पर मिट्टी लगाई, फिर मैं ने धो लिया, और अब देखता हूँ।”
16 इस पर कई फरीसी कहने लगे,; “यह मनुष्य परमेश्वर की ओर से नहीं, क्योंकि वह सब्त का दिन नहीं मानता।” औरों ने कहा, “पापी मनुष्य क्योंकर ऐसे चिन्ह दिखा सकता है?” सो उन में फूट पड़ी।
17 उन्होंने उस अन्धे से फिर कहा, “उसने जो तेरी आंखे खोली, तू उसके विषय में क्या कहता है?” उसने कहा, “यह भविष्यद्वक्ता है।”
18 परन्तु यहूदियों को विश्वास न हुआ कि यह अन्धा था और अब देखता है जब तक उन्होंने उसके माता-पिता को जिस की आंखे खुल गई थी, बुलाकर ।
19 उनसे न पूछा, “कि क्या यह तुम्हारा पुत्र है, जिसे तुम कहते हो कि अन्धा जन्मा था? फिर अब क्योंकर देखता है?”
20 उसके माता-पिता ने उत्तर दिया,; “हम तो जानते हैं कि यह हमारा पुत्र है, और अन्धा जन्मा था।
21 परन्तु हम यह नहीं जानते हैं कि अब क्योंकर देखता है; और न यह जानते हैं, कि किस ने उसकी आंखे खोलीं; वह सयाना है; उसी से पूछ लो; वह अपने विषय में आप कह देगा।”
22 ये बातें उसके माता-पिता ने इसलिये कहीं क्योंकि वे यहूदियों से डरते थे; क्योकि यहूदी एका कर चुके थे, कि यदि कोई कहे कि वह मसीह है, तो आराधनालय से निकाला जाए।
23 इसी कारण उसके माता-पिता ने कहा, कि वह सयाना है; उसी से पूछ लो।
24 तब उन्होंने उस मनुष्य को जो अन्धा था दूसरी बार बुलाकर उससे कहा, “परमेश्वर की स्तुति कर; हम तो जानते हैं कि वह मनुष्य पापी है।”
25 उसने उत्तर दिया,: “मैं नहीं जानता कि वह पापी है या नहीं: मैं एक बात जानता हूँ कि मैं अन्धा था और अब देखता हूँ।”
26 उन्होंने उससे फिर कहा, कि उसने तेरे साथ क्या किया? और किस तरह तेरी आंखें खोली?
27 उसने उनसे कहा,; “मैं तो तुम से कह चुका, और तुम ने न सुना; अब दूसरी बार क्यों सुनना चाहते हो? क्या तुम भी उसके चेले होना चाहते हो?”
28 तब वे उसे बुरा-भला कहकर बोले, “तू ही उसका चेला है; हम तो मूसा के चेले हैं।
29 हम जानते हैं कि परमेश्वर ने मूसा से बातें कीं; परन्तु इस मनुष्य को नहीं जानते की कहांकहाँ का है।”
30 उसने उनको उत्तर दिया,; “यह तो अचम्भे की बात है कि तुम नहीं जानते की कहांकहाँ का है तौभी उसने मेरी आँंखें खोल दीं।
31 हम जानते हैं कि परमेश्वर पापियों की नहीं सुनता परन्तु यदि कोई परमेश्वर का भक्त हो, और उसकी इच्छा पर चलता है, तो वह उसकी सुनता है।
32 जगत के आरम्भ से यह कभी सुनने में नहीं आया, कि किसी ने भी जन्म के अन्धे की आँंखे खोली हों।
33 यदि यह व्यिक्तव्यक्ति परमेश्वर की ओर से न होता, तो कुछ भी नहीं कर सकता।
34 उन्होंने उसको उत्तर दिया, “कि तू तो बिलकुल पापों में जन्मा है, तू हमें क्या सिखाता है?” और उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया।।
35 यीशु ने सुना, कि उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया है; और जब उससे भेंट हुई तो कहा, कि “क्या तू परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास करता है?”
36 उसने उत्तर दिया, “कि हे प्रभु,; वह कौन है कि मैं उस पर विश्वास करूँ?”
37 यीशु ने उससे कहा, तू ने उसे देखा भी है; और जो तेरे साथ बातें कर रहा है वही है।
38 उसने कहा, “हे प्रभु, मैं विश्वास करता हूँ।”: और उसे दंडवत किया।
39 तब यीशु ने कहा, “मैं इस जगत में न्याय के लिये आया हूँ, ताकि जो नहीं देखते वे देखें, और जो देखते हैं वे अन्धे हो जाएँ।”
40 जो फरीसी उसके साथ थे, उन्होंने ये बातें सुन कर उससे कहा, “क्या हम भी अन्धे हैं?”
41 यीशु ने उनसे कहा, “यदि तुम अन्धे होते तो पापी न ठहरते परन्तु अब कहते हो, कि हम देखते हैं, इसलिये तुम्हारा पाप बना रहता है।।
अध्याय 10
1 “मैं तुम से सच सच कहता हूँ, कि जो कोई द्वार से भेड़शाला में प्रवेश नहीं करता, परन्तु और किसी ओर से चढ़ जाता है, वह चोर और डाकू है।
2 परन्तु जो द्वार से भीतर प्रवेश करता है वह भेड़ों का चरवाहा है।
3 उसके लिये द्वारपाल द्वार खोल देता है, और भेंड़ें उसका शब्द सुनती हैं, और वह अपनी भेड़ों को नाम ले लेकर बुलाता है और बाहर ले जाता है।
4 और जब वह अपनी सब भेड़ों को बाहर निकाल चुकता है, तो उनके आगे आगे चलता है, और भेड़ें उसके पीछे पीछे हो लेती हैं; क्योंकि वे उसका शब्द पहचानती हैं।
5 परन्तु वे पराये के पीछे नहीं जाएँगी, परन्तु उससे भागेंगी, क्योंकि वे परायों का शब्द नहीं पहचानती।”
6 यीशु ने उनसे यह दृष्टान्त कहा, परन्तु वे न समझे कि ये क्या बातें हैं जो वह हम से कहता है।।
7 तब यीशु ने उनसे फिर कहा, “मैं तुम से सच सच कहता हूँ, कि भेड़ों का द्वार मैं हूँ।
8 जितने मुझ से पहले आए; वे सब चोर और डाकू हैं परन्तु भेड़ों ने उनकी न सुनी।
9 द्वार मैं हूँ: यदि कोई मेरे द्वारा भीतर प्रवेश करे तो उद्धार पाएगा और भीतर बाहर आया जाया करेगा और चारा पाएगा।
10 चोर किसी और काम के लिये नहीं परन्तु केवल चोरी करने और घात करने और नष्ट करने को आता है। मैं इसलिये आया कि वे जीवन पाएं, और बहुतायत से पाएँं।
11 अच्छा चरवाहा मैं हूँ; अच्छा चरवाहा भेड़ों के लिये अपना प्राण देता है।
12 मजदूर जो न चरवाहा है, और न भेड़ों का मालिक है, भेडि़ए को आते हुए देख, भेड़ों को छोड़कर भाग जाता है, और भेडि़या उन्हें पकड़ता और तित्तर बित्तर कर देता है।
13 वह इसलिये भाग जाता है कि वह मजदूर है, और उसको भेड़ों की चिन्ता नहीं।
14 अच्छा चरवाहा मैं हूँ; मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ, और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं। जिस तरह पिता मुझे जानता है, और मैं पिता को जानता हूँ।
15 जिस तरह पिता मुझे जानता है, और मैं पिता को जानता हूँ। इसी तरह मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ, और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं, और मैं भेड़ों के लिये अपना प्राण देता हूँ।
16 और मेरी और भी भेड़ें हैं, जो इस भेड़शाला की नहीं; मुझे उन का भी लाना अवश्य है, वे मेरा शब्द सुनेंगी; तब एक ही झुण्ड और एक ही चरवाहा होगा।
17 पिता इसलिये मुझ से प्रेम रखता है, कि मैं अपना प्राण देता हूँ, कि उसे फिर ले लूं।
18 कोई उसे मुझ से छीनता नहीं, वरन्मैं उसे आप ही देता हूँ: मुझे उसके देने का अधिकार है, और उसे फिर लेने का भी अधिकार है: यह आज्ञा मेरे पिता से मुझे मिली है।।
19 इन बातों के कारण यहूदियों में फिर फूट पड़ी।
20 उन में से बहुतेरे कहने लगे, “कि उसमें दुष्टात्मा है, और वह पागल है; उसकी क्यों सुनते हो?”
21 औरों ने कहा, “ये बाते ऐसे मनुष्य की नहीं जिसमें दुष्टात्मा हो: क्या दुष्टात्मा अन्धों की आँंखे खोल सकती है?”
22 यरूशलेम में स्थापन पब्र्बपर्व हुआ, और जाड़े की ऋतु थी।
23 और यीशु मन्दिर में सुलैमान के ओसारे में टहल रहा था।
24 तब यहूदियों ने उसे आ घेरा और पूछा, “तू हमारे मन को कब तक दुविधा में रखेगा? यदि तू मसीह है, तो हम से साफ कह दे।”
25 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “कि मैं ने तुम से कह दिया, और तुम प्रतीति करते ही नहीं, जो काम मैं अपने पिता के नाम से करता हूँ वे ही मेरे गवाह हैं।
26 परन्तु तुम इसलिये प्रतीति नहीं करते, कि मेरी भेड़ों में से नहीं हो।
27 मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं, और मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं।
28 और मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूँ, और वे कभी नाश नहीं होंगी, और कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन न लेगा।
29 मेरा पिता, जिस ने उन्हें मुझ को दिया है, सब से बड़ा है, और कोई उन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता।
30 मैं और पिता एक हैं।”
31 यहूदियों ने उसे पत्थरवाह करनेे को फिर पत्थर उठाए।
32 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “कि मैं ने तुम्हें अपने पिता की ओर से बहुत से भले काम दिखाए हैं, उन में से किस काम के लिये तुम मुझे पत्थरवाह करते हो?”
33 यहूदियों ने उसको उत्तर दिया, “कि भले काम के लिये हम तुझे पत्थरवाह नहीं करते, परन्तु परमेश्वर की निन्दा के कारण और इसलिये कि तू मनुष्य होकर अपने आप को परमेश्वर बनाता है।”
34 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या तुम्हारी व्यवस्था में नहीं लिखा है कि ‘मैं ने कहा, तुम ईश्वर हो’?
35 यदि उसने उन्हें ईश्वर कहा जिन के पास परमेश्वर का वचन पहुंचा (और पवित्र शास्त्र की बात लोप नहीं हो सकती।)
36 तो जिसे पिता ने पवित्र ठहराकर जगत में भेजा है, तुम उससे कहते हो, ‘कि तू निन्दा करता है,’ इसलिये कि मैं ने कहा, ‘मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ’।
37 यदि मैं अपने पिता के काम नहीं करता, तो मेरी प्रतीति न करो।
38 परन्तु यदि मैं करता हूँ, तो चाहे मेरी प्रतीति न भी करो, परन्तु उन कामों की तो प्रतीति करो, ताकि तुम जानो, और समझो, कि पिता मुझ में है, और मैं पिता में हूँ।”
39 तब उन्होंने फिर उसे पकड़ने का प्रयत्न किया परन्तु वह उनकेहाथ से निकल गया।।
40 फिर वह यरदन के पार उस स्थान पर चला गया, जहांजहाँ यूहन्ना पहले बपतिस्मा दिया करता था, और वहीं रहा।
41 और बहुतेरे उसके पास आकर कहते थे, “कि युहन्ना ने तो कोई चिन्ह नहीं दिखाया, परन्तु जो कुछ यूहन्ना ने इस के विषय में कहा था वह सब सच था।”
42 और वहाँ बहुतेरों ने उस पर विश्वास किया।।
अध्याय 11
1 मरियम और उसकी बहिन मरथा के गाँव बैतनिय्याह का लाजर नाम एक मनुष्य बीमार था।
2 यह वही मरियम थी जिस ने प्रभु पर इत्र डालकर उसके पाँंवों को अपने बालों से पोंछा था, इसी का भाई लाजर बीमार था।
3 सो उसकी बहिनों ने उसे कहला भेजा, कि “हे प्रभु, देख, जिस से तू प्रीति रखता है, वह बीमार है।”
4 यह सुनकर यीशु ने कहा, “यह बीमारी मृत्यु की नहीं, परन्तु परमेश्वर की महिमा के लिये है, कि उसके द्वारा परमेश्वर के पुत्र की महिमा हो।”
5 और यीशु मरथा और उसकी बहन और लाजर से प्रेम रखता था।
6 सो जब उसने सुना, कि वह बीमार है, तो जिस स्थान पर वह था, वहाँ दो दिन और ठहर गया।
7 फिर इस के बाद उसने चेलों से कहा, “कि आओ, हम फिर यहूदिया को चलें।”
8 चेलों ने उससे कहा, “हे रब्बी, अभी तो यहूदी तुझे पत्थरवाह करना चाहते थे, और क्या तू फिर भी वहीं जाता है?”
9 यीशु ने उत्तर दिया, “क्या दिन के बारह घंटे नहीं होते? यदि कोई दिन को चले, तो ठोकर नहीं खाता, क्योंकि इस जगत का उजाला देखता है।
10 परन्तु यदि कोई रात को चले, तो ठोकर खाता है, क्योंकि उसमें प्रकाश नहीं।”
11 उसने ये बातें कहीं, और इस के बाद उनसे कहने लगा, “कि हमारा मित्र लाजर सो गया है, परन्तु मैं उसे जगाने जाता हूँ।”
12 तब चेलों ने उससे कहा, “हे प्रभु, यदि वह सो गया है, तो बच जाएगा।”
13 यीशु ने तो उसकी मृत्यु के विषय में कहा था: परन्तु वे समझे कि उसने नींद से सो जाने के विषय में कहा।
14 तब यीशु ने उनसे साफ कह दिया, “कि लाजर मर गया है।
15 और मैं तुम्हारे कारण आनन्दित हूँ कि मैं वहाँ न था जिस से तुम विश्वास करो।, परन्तु अब आओ, हम उसके पास चलें।”
16 तब थोमा ने जो दिदुमुस कहलाता है, अपने साथ के चेलों से कहा, “आओ, हम भी उसके साथ मरने को चलें।”
17 सो यीशु को आकर यह मालूम हुआ कि उसे कब्र में रखे चार दिन हो चुके हैं।
18 बैतनिय्याह यरूशलेम के समीप कोई दो मील की दूरी पर था।
19 और बहुत से यहूदी मरथा और मरियम के पास उनके भाई के विषय में शान्ति देने के लिये आए थे।
20 जबसो मरथा यीशु के आने का समचार सुनकर उससे भेंट करने को गई, परन्तु मरियम घर में बैठी रही।
21 मरथा ने यीशु से कहा, “हे प्रभु, यदि तू यहाँ होता, तो मेरा भाई कदापि न मरता।
22 और अब भी मैं जानती हूँ, कि जो कुछ तू परमेश्वर से माँगेगा, परमेश्वर तुझे देगा।” 23 यीशु ने उससे कहा, “तेरा भाई जी उठेगा।”
24 मरथा ने उससे कहा, मैं जानती हूँ, “कि अन्तिम दिन में पुनरूत्थान** के समय वह जी उठेगा।”
25 यीशु ने उससे कहा, “पुनरूत्थान5 और जीवन मैं ही हूँ, जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए, तौभी जीएगा।
26 और जो कोई जीवित है, और मुझ पर विश्वास करता है, वह अनन्तकाल तक न मरेगा।, क्या तू इस बात पर विश्वास करती है?”
27 उसने उससे कहा, “हाँं, हे प्रभु, मैं विश्वास कर चुकी हूँ, कि परमेश्वर का पुत्र मसीह जो जगत में आनेवाला था, वह तू ही है।”
28 यह कहकर वह चली गई, और अपनी बहिन मरियम को चुपके से बुलाकर कहा, “गुरू यहीं है, और तुझे बुलाता है।”
29 वह सुनते ही तुरन्त उठकर उसके पास आई।
30 (यीशु अभी गाँव में नहीं पहुंचा था, परन्तु उसी स्थान में था जहांजहाँ मरथा ने उससे भेंट की थी।)
31 तब जो यहूदी उसके साथ घर में थे, और उसे शान्ति दे रहे थे, यह देखकर कि मरियम तुरन्त उठके बाहर गई है और यह समझकर कि वह कब्र पर रोने को जाती है, उसके पीछे हो लिये।
32 जब मरियम वहाँ पहुंचीपहुँची जहांजहाँ यीशु था, तो उसे देखते ही उसके पाँंवों पर गिर के कहा, “हे प्रभु, यदि तू यहाँ होता तो मेरा भाई न मरता।”
33 जब यीशु न उसको और उन यहूदियों कोे जो उसके साथ आए थे रोते हुए देखा, तो आत्मा में बहुत ही उदास हुआ, और घबरा व्याकुल हुआकर** कहा, तुम ने उसे कहां रखा है?
34 और कहा, “तुम ने उसे कहाँ रखा है?” उन्होंने उससे कहा, “हे प्रभु, चलकर देख ले।”।
35 यीशु के आंसू बहने लगे।
36 तब यहूदी कहने लगे, “देखो, वह उससे कैसी प्रीति रखता था।”
37 परन्तु उन में से कितनों ने कहा, “क्या यह जिस ने अन्धे की आँंखें खोली, यह भी न कर सका कि यह मनुष्य न मरता?”
38 यीशु मन में फिर बहुत ही उदास होकर कब्र पर आया, वह एक गुफा थी, और एक पत्थर उस पर धरा था।
39 यीशु ने कहा,; “पत्थर को उठाओ।”: उस मरे हुए की बहिन मरथा उससे कहने लगी, “हे प्रभु, उसमें से अब तो दुर्गंध आती है, क्योंकि उसे मरे चार दिन हो गए।”
40 यीशु ने उससे कहा, “क्या मैं ने तुझ से न कहा था कि यदि तू विश्वास करेगी, तो परमेश्वर की महिमा को देखेगी।”
41 तब उन्होंने उस पत्थर को हटाया, फिर यीशु ने आँंखें उठाकर कहा, “हे पिता, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि तू ने मेरी सुन ली है।
42 और मै जानता था, कि तू सदा मेरी सुनता है, परन्तु जो भीड़ आस पास खड़ी है, उनके कारण मैं ने यह कहा, जिस से कि वे विश्वास करें, कि तू ने मुझे भेजा है।”
43 यह कहकर उसने बड़े शब्द से पुकारा, “कि हे लाजर, निकल आ!”।
44 जो मर गया था, वह कफन से हाथ पाँंव बँधबन्धे हुए निकल आया और उसका मुँंह अंगोछे से लिपटा हुआ था। यीशु ने उनसे कहा, “उसे खोलकर जाने दो।”।
45 तब जो यहूदी मरियम के पास आए थे, और उसका यह काम देखा था, उन में से बहुतों ने उस पर विश्वास किया।
46 परन्तु उन में से कितनों ने फरीसियों के पास जाकर यीशु के कामों का समाचार दिया।।
47 इस पर महायाजकों और फरीसियों ने मुख्य सभा** के लोगों को इकट्ठा करके कहा, “हम करते क्या हैं? यह मनुष्य तो बहुत चिन्ह दिखाता है।
48 यदि हम उसे योंही छोड़ दे, तो सब उस पर विश्वास ले आएँगे और रोमी आकर हमारी जगह और जाति दोनों पर अधिकार कर लेंगे।”
49 तब उन में से काइफा नाम एक व्यिक्तव्यक्ति ने जो उस वर्ष का महायाजक था, उनसे कहा, “तुम कुछ नहीं जानते;।
50 और न यह सोचते हो, कि तुम्हारे लिये यह भला है, कि हमारे लोगों के लिये एक मनुष्य मरे, और न यह, कि सारी जाति नाश हो।”
51 यह बात उसने अपनी ओर से न कही, परन्तु उस वर्ष का महायाजक होकर भविष्यद्वाणी की, कि यीशु उस जाति के लिये मरेगा;।
52 और न केवल उस जाति के लिये, वरन् इसलिये भी, कि परमेश्वर की तित्तर बित्तर सन्तानों को एक कर दे।
53 सो उसी दिन से वे उसके मार डालने की सम्मति करने लगे।।
54 इसलिये यीशु उस समय से यहूदियों में प्रगट होकर न फिरा; परन्तु वहाँ से जंगल के निकट वर्ती प्रदेश के देखके में इफ्राईम नाम, एक नगर को चला गया; और अपने चेलों के साथ वहीं रहने लगा।
55 और यहूदियों का फसह निकट था, और बहुतेरे लोग फसह से पहले दिहात से यरूशलेम को गए कि अपने आप को शुद्ध करें।
56 सो वे यीशु को ढूंढ़ने और मन्दिर में खड़े होकर आपस में कहने लगे, “तुम क्या समझते हो? क्या वह पर्व में नहीं आएगा?”
57 क्या वह पब्र्ब में नहीं आएगा? और महायाजकों और फरीसियों ने भी आज्ञा दे रखी थी, कि यदि कोई यह जाने कि यीशु कहांकहाँ है तो बताए, कि उसे पकड़ लें।।
अध्याय 12
1 फिर यीशु फतह से छ: दिन पहले बैतनिय्याह में आया, जंहा लाजर था: जिसे यीशु ने मरे हुओं में से जिलाया था।
2 वहाँ उन्होंने उसके लिये भोजन तैयार किया, और मरथा सेवा कर रही थी, और लाजर उन में से एक था, जो उसके साथ भोजन करने के लिये बैठे थे।
3 तब मरियम ने जटामासी का आध सेर बहुमोल इत्र लेकर यीशु के पाँवों पर डाला, और अपने बालों से उसके पाँवपांव पोंछे, और इत्र की सुगंध से घर सुगन्धित हो गया।
4 परन्तु उसके चेलों में से यहूदा इस्करियोती नाम एक चेला जो उसे पकड़वाने पर था, कहने लगा,।
5 “यह इत्र तीन सौ दीनार ** में बेचकर कंगालों को क्यों न दिया गया?”
6 उसने यह बात इसलिये न कही, कि उसे कंगालों की चिन्ता थी, परन्तु इसलिये कि वह चोर था और उसके पास उनकी थैली रहती थी, और उसमें जो कुछ डाला जाता था, वह निकाल लेता था।
7 यीशु ने कहा, “उसे मेरे गाड़े जाने के दिन के लिये रहने दे।
8 क्योंकि कंगाल तो तुम्हारे साथ सदा रहते हैं, परन्तु मैं तुम्हारे साथ सदा न रहूँगा।”
9 यहूदियों में से साधारण लोग जान गए, कि वह वहाँ है, और वे न केवल यीशु के कारण आए परन्तु इसलिये भी कि लाजर को देंखें, जिसे उसने मरे हुओं में से जिलाया था।
10 तब महायाजकों ने लाजर को भी मार डालने की सम्मति की।
11 क्योंकि उसके कारण बहुत से यहूदी चले गए, और यीशु पर विश्वास किया।
12 दूसरे दिन बहुत से लोगों ने जो पब्र्बपर्व में आए थे, यह सुनकर, कि यीशु यरूशलेम में आरहाआता है।
13 इसलिए उन्होंने खजूर की, डालियाँं लेीं, और उससे भेंट करने को निकले, और पुकारने लगे, “कि होशाना!, धन्य इस्राएल का राजा, जो प्रभु के नाम से आता है।”
14 जब यीशु को एक गदहे का बच्चा मिला, तो उस पर बैठा,। जैसा लिखा है,
15 जैसा लिखा है, “कि हे सिय्योन की बेटी, मत डर;, देख, तेरा राजा गदहे के बच्चे पर चढ़ा हुआ चला आता है।”
16 उसके चेले, ये बातें पहले न समझे थे; परन्तु जब यीशु की महिमा प्रगट हुई, तो उनको स्मरण आया, कि ये बातें उसके विषय में लिखी हुई थीं; और लोगों ने उससे इस प्रकार का व्यवहार किया था।
17 तब भीड़ के लोगों ने जो उस समय उसके साथ थे यह गवाही दी कि उसने लाजर को कब्र में से बुलाकर, मरे हुओं में से जिलाया था।
18 इसी कारण लोग उससे भेंट करने को आए थे क्योंकि उन्होंने सुना था, कि उसने यह आश्चर्यकर्म दिखाया है।
19 तब फरीसियों ने आपस में कहा, “सोचो तो सही कि तुम से कुछ नहीं बन पड़ता: देखो, संसार उसके पीछे हो चला है।”
20 जो लोग उस पब्र्बपर्व में भजन करने आए थे उन में से कई यूनानी थे।
21 उन्होंने गलील के बैतसैदा के रहनेवाले फिलिप्पुस के पास आकर उससे विनती की, “कि श्रीमान् हम यीशु से भेंट करना चाहते हैं।”
22 फिलिप्पुस ने आकर अद्रियास से कहा; तब अन्द्रियास और फिलिप्पुस ने यीशु से कहा।
23 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “वह समय आ गया है, कि मनुष्य के पुत्र कि महिमा हो।
24 मैं तुम से सच सच कहता हूँ, कि जब तक गेहूँ का दाना भूमि में पड़कर मर नहीं जाता, वह अकेला रहता है परन्तु जब मर जाता है, तो बहुत फल लाता है।
25 जो अपने प्राण को प्रिय जानता है, वह उसे खो देता है; और जो इस जगत में अपने प्राण को अप्रिय जानता है, वह उसे खो देता है; और जो इस जगत में अपने प्राण को अप्रिय जानता है; वह अनन्त जीवन के लिये उसकी रक्षा करेगा।
26 यदि कोई मेरी सेवा करे, तो मेरे पीछे हो ले; और जहांजहाँ मैं हूँ वहाँ मेरा सेवक भी होगा; यदि कोई मेरी सेवा करे, तो पिता उसका आदर करेगा।
27 “अब मेरा जी व्याकुल हो रहा है। इसलिये अब मैं क्या कहूँ? ‘हे पिता, मुझे इस घड़ी से बचा?’ परन्तु मैं इसी कारण इस घड़ी को पहुँचापहुंचा हूँ।
28 हे पिता अपने नाम की महिमा कर।”: तब यह आकाशवाणी हुई, “कि मैं ने उसकी महिमा की है, और फिर भी करूँगा।”
29 तब जो लोग खड़े हुए सुन रहे थे, उन्होंने कहा; कि बादल गरजा, औरों ने कहा, “कोई स्वर्गदूत उससे बोला।”
30 इस पर यीशु ने कहा, “यह शब्द मेरे लिये नहीं परन्तु तुम्हारे लिये आया है।
31 अब इस जगत का न्याय होता है, अब इस जगत का सरदार निकाल दिया जाएगा।
32 और मैं यदि पृथ्वी पर से ऊँचेऊंचे पर चढ़ाया जाऊंगाजाउँगा, तो सब को अपने पास खीचूँगाखीचंूगा।”
33 ऐसा कहकर उसने यह प्रगट कर दिया, कि वह कैसी मृत्यु से मरेगा।
34 इस पर लोगों ने उससे कहा, “कि हम ने व्यवस्था की यह बात सुनी है, कि मसीह सर्वदा रहेगा, फिर तू क्यों कहता है, कि मनुष्य के पुत्र को ऊंचे ऊँचे पर चढ़ाया जाना अवश्य है? यह मनुष्य का पुत्र कौन है?”
35 यह मनुष्य का पुत्र कौन है? यीशु ने उनसे कहा, “ज्योति अब थोड़ी देर तक तुम्हारे बीच में है, जब तक ज्योति तुम्हारे साथ है तब तक चले चलो; ऐसा न हो कि अन्धकार तुम्हें आ घेरे; जो अन्धकार में चलता है वह नहीं जानता कि किधर जाता है।
36 जब तक ज्योति तुम्हारे साथ है, ज्योति पर विश्वास करो कि तुम ज्योति के सन्तान बनोहोओ।।” ये बातें कहकर यीशु चला गया और उनसे छिपा रहा।
37 और उसने उनके साम्हने इतने चिन्ह दिखाए, तौभी उन्होंने उस पर विश्वास न किया; ।
38 ताकि यशायाह भविष्यद्वक्ता का वचन पूरा हो जो उसने कहा: कि “हे प्रभु, हमारे समाचार की किस ने प्रतीति की है? और प्रभु का भुजबल किस पर प्रगट हुआ?”
39 इस कारण वे विश्वास न कर सके, क्योंकि यशायाह ने यहफिर भी कहा है:।
40 “कि उसने उनकी आँंखें अन्धी, और उन का मन कठोर किया है; कहीं ऐसा न हो, कि आँखें आंखों से देखें, और मन से समझें, और फिरें, और मैं उन्हें चंगा करूँ।”
41 यशायाह ने ये बातें इसलिये कहीं, कि उसने उसकी महिमा देखी; और उसने उसके विषय में बातें की।
42 तौभी सरदारों में से भी बहुतों ने उस पर विश्वास किया, परन्तु फरीसियों के कारण प्रगट में नहीं मानते थे, ऐसा न हो कि आराधनालय में से निकाले जाएँ।
43 क्योंकि मनुष्यों की प्रशंसा उनको परमेश्वर की प्रशंसा से अधिक प्रिय लगती थी।
44 यीशु ने पुकारकर कहा, “जो मुझ पर विश्वास करता है, वह मुझ पर नहीं, वरन मेरेवरन्मेरे भेजनेवाले पर विश्वास करता है।
45 और जो मुझे देखता है, वह मेरे भेजनेवाले को देखता है।
46 मैं जगत में ज्योति होकर आया हूँ ताकि जो कोई मुझ पर विश्वास करे, वह अन्धकार में ने रहे।
47 यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता, क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ।
48 जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वह पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा।
49 क्योंकि मैं ने अपनी ओर से बातें नहीं कीं, परन्तु पिता जिस ने मुझे भेजा है उसी ने मुझे आज्ञा दी है, कि क्या क्या कहूँ? और क्या क्या बोलूं?
50 और मैं जानता हूँ, कि उसकी आज्ञा अनन्त जीवन है इसलिये मैं जो बोलता हूँ, वह जैसा पिता ने मुझ से कहा है वैसा ही बोलता हूँ।”।
अध्याय 13
1 फसह के पब्र्बपर्व से पहले जब यीशु ने जान लिया, कि मेरी वह घड़ी आ पहुंचीपहुँची है कि जगत छोड़कर पिता के पास जाऊँजाऊं, तो अपने लोगों से, जो जगत में थे, जैसा प्रेम वह रखता था, अन्त तक वैसा ही प्रेम रखता रहा।
2 और जब शैतान** शमौन के पुत्र यहूदा इस्करियोती के मन में यह डाल चुका था, कि उसे पकड़वाए, तो भोजन के समय।
3 यीशु ने यह जानकर कि पिता ने सब कुछ मेरे हाथ में कर दिया है और मैं परमेश्वर के पास से आया हूँ, और परमेश्वर के पास जाता हूँ।
4 भोजन पर से उठकर अपने कपड़े उतार दिए, और अंगोछाअँगोछा लेकर अपनी कमर बान्धी।
5 तब बरतन में पानी भरकर चेलों के पांव पाँव धोने और जिस अँगोछाअंगोछे से उसकी कमर बन्धी थी उसी से पोंछने लगा।
6 जब वह शमौन पतरस के पास आया: तब उसने उससे कहा, “हे प्रभु, क्या तू मेरे पाँव धोता है?”
7 क्या तू मेरे पांव धोता है? यीशु ने उसको उत्तर दिया, “कि जो मैं करता हूँ, तू अब नहीं जानता, परन्तु इस के बाद समझेगा।”
8 पतरस ने उससे कहा, “तू मेरे पांवपाँव कभी न धोने पाएगा!”: यह सुनकर यीशु ने उससे कहा, “यदि मैं तुझे न धोऊँं, तो मेरे साथ तेरा कुछ भी साझा नहीं।”
9 शमौन पतरस ने उससे कहा, “हे प्रभु, तो मेरे पाँवपांव ही नहीं, वरन् हाथ हाथ और सिर भी धो दे।”
10 यीशु ने उससे कहा, “जो नहा चुका है, उसे पाँवपांव के सिवा और कुछ धोने का प्रयोजन नहीं; परन्तु वह बिलकुल शुद्ध है: और तुम शुद्ध हो; परन्तु सब के सब नहीं।”
11 वह तो अपने पकड़वानेवाले को जानता था इसी लिये उसने कहा, “तुम सब के सब शुद्ध नहीं।”
12 जब वह उनके पाँवपांव धो चुका और अपने कपड़े पहिनकर फिर बैठ गया तो उनसे कहने लगा, “क्या तुम समझे कि मैं ने तुम्हारे साथ क्या किया?
13 तुम मुझे गुरू, और प्रभु, कहते हो, और भला कहते हो, क्योंकि मैं वहीं हूँ।
14 यदि मैं ने प्रभु और गुरू होकर तुम्हारे पाँवपांव धोए; तो तुम्हें भी एक दुसरे के पांवपाँव धोना चाहिए।
15 क्योंकि मैं ने तुम्हें नमूना दिखा दिया है, कि जैसा मैं ने तुम्हारे साथ किया है, तुम भी वैसा ही किया करो।
16 मैं तुम से सच सच कहता हूँ, दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं; और न भेजा हुआ** अपने भेजनेवाले से।
17 तुम तो ये बातें जानते हो, और यदि उन पर चलो, तो धन्य हो।
18 मैं तुम सब के विषय में नहीं कहता: जिन्हें मैं ने चुन लिया है, उन्हें मैं जानता हूँ: परन्तु यह इसलिये है, कि पवित्र शास्त्र का यह वचन पूरा हो, ‘कि जो मेरी रोटी खाता है, उसने मुझ पर लात उठाई।’
19 अब मैं उसके होने से पहले तुम्हें जताए देता हूँ कि जब हो जाए तो तुम विश्वास करो कि मैं वहीं हूँ।
20 मैं तुम से सच सच कहता हूँ, कि जो मेरे भेजे हुए को ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है, और जो मुझे ग्रहण करता है, वह मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है।”
21 ये बातें कहकर यीशु आत्मा में व्याकुल हुआ और यह गवाही दी, “कि मैं तुम से सच सच कहता हूँ, कि तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा।”
22 चेले यह संदेह करते हुए, कि वह किस के विषय में कहता है, एक दूसरे की ओर देखने लगे।
23 उसके चेलों में से एक जिस से यीशु प्रेम रखता था, यीशु की छाती की ओर झुका हुआ बैठा** था।
24 तब शमौन पतरस ने उसकी ओर सैन करके पूछा, “कि बता तो, वह किस के विषय में कहता है?”
25 तब उसने उसी तरह यीशु की छाती की ओर झुक कर पूछा, “हे प्रभु, वह कौन है?” यीशु ने उत्तर दिया, “जिसे मैं यह रोटी का टुकड़ा डुबोकर दूँगा, वही है।”
26 और उसने टुकड़ा डुबोकर शमौन के पुत्र यहूदा इस्करियोती को दिया।
27 और टुकड़ा लेते ही शैतान उसमें समा गया: तब यीशु ने उससे कहा, “जो तू करता है, तुरन्त कर।”
28 परन्तु बैठनेवालों5 में से किसी ने न जाना कि उसने यह बात उससे किस लिये कही।
29 यहूदा के पास थैली रहती थी, इसलिये किसी किसी ने समझा, कि यीशु उससे कहता है, कि जो कुछ हमें पब्र्बपर्व के लिये चाहिए वह मोल ले, या यह कि कंगालों को कुछ दे।
30 तब वह टुकड़ा लेकर तुरन्त बाहर चला गया, और रात्रि का समय था।
31 जब वह बाहर चला गया तो यीशु ने कहा,; “अब मनुष्य का पुत्र की महिमा हुई, और परमेश्वर की महिमा उसमें हुई;।
32 और परमेश्वर भी अपने में उसकी महिमा करेगा, वरन्तुरन्त करेगा।
33 हे बालको, मैं और थोड़ी देर तुम्हारे पास हूँ: फिर तुम मुझे ढूँढूंढोगे, और जैसा मैं ने यहूदियों से कहा, ‘कि जहांजहाँ मैं जाता हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते,’ वैसा ही मैं अब तुम से भी कहता हूँ।
34 मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूँ, कि एक दूसरे से प्रेम रखो: जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दुसरे से प्रेम रखो।
35 यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।”
36 शमौन पतरस ने उससे कहा, “हे प्रभु, तू कहांकहाँ जाता है?” यीशु ने उत्तर दिया, “कि जहांजहाँ मैं जाता हूँ, वहाँ तू अब मेरे पीछे आ नहीं सकता! परन्तु इस के बाद मेरे पीछे आएगा।”
37 पतरस ने उससे कहा, “हे प्रभु, अभी मैं तेरे पीछे क्यों नहीं आ सकता? मैं तो तेरे लिये अपना प्राण दूँगा।”
38 यीशु ने उत्तर दिया, “क्या तू मेरे लिये अपना प्राण देगा? मैं तुझ से सच सच कहता हूँ कि मुर्ग बाँगबांग न देगा जब तक तू तीन बार मेरा इन्कार न कर लेगा।
अध्याय 14
1 “तुम्हारा मन व्याकुल न हो, तुम परमेश्वर पर विश्वास रखते हो** मुझ पर भी विश्वास रखो।
2 मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं, यदि न होते, तो मैं तुम से कह देता क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ।
3 और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ यहंा ले जाऊँंगा, कि जहांजहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो।
4 और जहांजहाँ मैं जाता हूँ तुम वहाँ का मार्ग जानते हो।”
5 थोमा ने उससे कहा, “हे प्रभु, हम नहीं जानते कि तू कहाँ जाता है;? तो मार्ग कैसे जानें?”
6 यीशु ने उससे कहा, “मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता।
7 यदि तुम ने मुझे जाना होता, तो मेरे पिता को भी जानते, और अब उसे जानते हो, और उसे देखा भी है।”
8 फिलिप्पुस ने उससे कहा, “हे प्रभु, पिता को हमें दिखा दे: यही हमारे लिये बहुत है।”
9 यीशु ने उससे कहा,; “हे फिलिप्पुस, मैं इतने दिन से तुम्हारे साथ हूँ, और क्या तू मुझे नहीं जानता? जिस ने मुझे देखा है उसने पिता को देखा है: तू क्यों कहता है कि पिता को हमें दिखा?।
10 क्या तू प्रतीति नहीं करता, कि मैं पिता में हूँ, और पिता मुझ में हैं? ये बातें जो मैं तुम से कहता हूँ, अपनी ओर से नहीं कहता, परन्तु पिता मुझ में रहकर अपने काम करता है।
11 मेरी ही प्रतीति करो, कि मैं पिता में हूँ; और पिता मुझ में है; नहीं तो कामों ही के कारण मेरी प्रतीति करो।
12 “मैं तुम से सच सच कहता हूँ, कि जो मुझ पर विश्वास रखता है, ये काम जो मैं करता हूँ वह भी करेगा, वरन् इन से भी बड़े काम करेगा, क्योंकि मैं पिता के पास जाता हूँ।
13 और जो कुछ तुम मेरे नाम से माँगोगे, वही मैं करूँगा कि पुत्र के द्वारा पिता की महिमा हो।
14 यदि तुम मुझ से मेरे नाम से कुछ माँगोगे, तो मैं उसे करूँगा।
15 “यदि तुम मुझ से प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे।
16 और मैं पिता से विनती करूँगा, और वह तुम्हें एक और सहायक देगा, कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे।
17 अर्थात् सत्य का आत्मा, जिसे संसार ग्रहण नहीं कर सकता, क्योंकि वह न उसे देखता है और न उसे जानता है: तुम उसे जानते हो, क्योंकि वह तुम्हारे साथ रहता है, और वह तुम में होगा।
18 “मैं तुम्हें अनाथ न छोडूँंगा, मैं तुम्हारे पास आता हूँ।
19 और थोड़ी देर रह गई है कि संसार मुझे न देखेगा, परन्तु तुम मुझे देखोगे, इसलिये कि मैं जीवित हूँ, तुम भी जीवित रहोगे।
20 उस दिन तुम जानोगे, कि मैं अपने पिता में हूँ, और तुम मुझ में, और मैं तुम में।
21 जिसके पास मेरी आज्ञा है, और वह उन्हें मानता है, वही मुझ से प्रेम रखता है, और जो मुझ से प्रेम रखता है, उससे मेरा पिता प्रेम रखेगा, और मैं उससे प्रेम रखूंगा, और अपने आप को उस पर प्रगट करूँगा।”
22 उस यहूदा ने जो इस्करियोती न था, उससे कहा, “हे प्रभु, क्या हुआ की तू अपने आप को हम पर प्रगट किया चाहता है, और संसार पर नहीं?”।
23 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “यदि कोई मुझ से प्रेम रखे, तो वह मेरे वचन को मानेगा, और मेरा पिता उससे प्रेम रखेगा, और हम उसके पास आएँगे, और उसके साथ वासबास करेंगे।
24 जो मुझ से प्रेम नहीं रखता, वह मेरे वचन नहीं मानता, और जो वचन तुम सुनते हो, वह मेरा नहीं वरन पिता का है, जिस ने मुझे भेजा।।
25 “ये बातें मैं ने तुम्हारे साथ रहते हुए तुम से कही।
26 परन्तु सहायक अर्थात् पवित्र आत्मा जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैं ने तुम से कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा।
27 मैं तुम्हें शान्ति दिए जाता हूँ, अपनी शान्ति तुम्हें देता हूँ; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता: तुम्हारा मन न घबराए और न डरे।
28 तुम ने सुना, कि मैं ने तुम से कहा, ‘कि मैं जाता हूँ, और तुम्हारे पास फिर आता हूँ’: यदि तुम मुझ से प्रेम रखते, तो इस बात से आनन्दित होते, कि मैं पिता के पास जाता हूँ क्योंकि पिता मुझ से बड़ा है।
29 और मैं ने अब इस के होने से पहले तुम से कह दिया है, कि जब वह हो जाए, तो तुम प्रतीति करो।
30 मैं अब से तुम्हारे साथ और बहुत बातें न करूँगा, क्योंकि इस संसार का सरदार आता है, और मुझ में उसका कुछ नहीं।
31 परन्तु यह इसलिये होता है कि संसार जाने कि मैं पिता से प्रेम रखता हूँ, और जिस तरह पिता ने मुझे आज्ञा दी, मैं वैसे ही करता हूँ।: उठो, यहाँ से चलें।।
अध्याय 15
1 “सच्ची दाखलता मैं हूँ; और मेरा पिता किसान है।
2 जो डाली मुझ में है, और नहीं फलती, उसे वह काट डालता है, और जो फलती है, उसे वह छाँटता छांटता है ताकि और फले।
3 तुम तो उस वचन के कारण जो मैं ने तुम से कहा है, शुद्ध हो।
4 तुम मुझ में बने रहो, और मैं तुम में: जैसे डाली यदि दाखलता में बनी न रहे, तो अपने आप से नहीं फल सकती, वैसे ही तुम भी यदि मुझ में बने न रहो तो नहीं फल सकते।
5 में दाखलता हूँ: तुम डालियां हो; जो मुझ में बना रहता है, और मैं उसमें, वह बहुत फल फलता है, क्योंकि मुझ से अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते।
6 यदि कोई मुझ में बना न रहे, तो वह डाली की समाननाई फेंक दिया जाता, और सूख जाता है; और लोग उन्हें बटोरकर आग में झोंक देते हैं, और वे जल जाती हैं।
7 यदि तुम मुझ में बने रहो, और मेरी बातें तुम में बनी रहें तो जो चाहो माँगो और वह तुम्हारे लिये हो जाएगा।
8 मेरे पिता की महिमा इसी से होती है, कि तुम बहुत सा फल लाओ, तब ही तुम मेरे चेले ठहरोगे।
9 जैसा पिता ने मुझ से प्रेम रखा, वैस ही में ने तुम से प्रेम रखा मेरे प्रेम में बने रहो।
10 यदि तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे, तो मेरे प्रेम में बने रहोगे: जैसा कि मैं ने अपने पिता की आज्ञाओं को माना है, और उसके प्रेम में बना रहता हूँ।
11 मैं ने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि मेरा आनन्द तुम में बना रहे, और तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए।
12 “मेरी आज्ञा यह है, कि जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो।
13 इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे।
14 जो कुछ मैं तुम्हें आज्ञा देता हूँ, यदि उसे करो, तो तुम मेरे मित्र हो।
15 अब से मैं तुम्हें दास न कहूँगा, क्योंकि दास नहीं जानता, कि उसका स्वामी क्या करता है: परन्तु मैं ने तुम्हें मित्र कहा है, क्योंकि मैं ने जो बातें अपने पिता से सुनीं, वे सब तुम्हें बता दीं।
16 तुम ने मुझे नहीं चुना परन्तु मैं ने तुम्हें चुना है और तुम्हें ठहराया ताकि तुम जाकर फल लाओ; और तुम्हारा फल बना रहे, कि तुम मेरे नाम से जो कुछ पिता से माँगो, वह तुम्हें दे।
17 इन बातें की आज्ञा मैं तुम्हें इसलिये देता हूँ, कि तुम एक दूसरे से प्रेम रखो।
18 “यदि संसार तुम से बैर रखता है, तो तुम जानते हो, कि उसने तुम से पहले मुझ से भी बैर रखा।
19 यदि तुम संसार के होते, तो संसार अपनों से प्रीति रखता, परन्तु इस कारण कि तुम संसार में के नही वरन्मैं ने तुम्हें से चुन लिया है इसी लिये संसार तुम से बैर रखता है।
20 जो बात मैं ने तुम से कही थी, ‘कि दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं होता,’ उसको याद रखो: यदि उन्होंने मुझे सताया, तो तुम्हें भी सताएँगेएंगे; यदि उन्होंने मेरी बात मानी, तो तुम्हारी भी मानेंगे।
21 परन्तु यह सब कुछ वे मेरे नाम के कारण तुम्हारे साथ करेंगे क्योंकि वे मेरे भेजनेवाले को नहीं जानते।
22 यदि मैं न आता और उनसे बातें न करता, तो वे पापी न ठहरते परन्तु अब उन्हें उनके पाप के लिये कोई बहाना नहीं।
23 जो मुझ से बैर रखता है, वह मेरे पिता से भी बैर रखता है।
24 यदि मैं उन में वे काम न करता, जो और किसी ने नहीं किए तो वे पापी नहीं ठहरते, परन्तु अब तो उन्होंने मुझे और मेरे पिता दोनों को देखा, और दोनों से बैर किया।
25 और यह इसलिये हुआ, कि वह वचन पूरा हो, जो उनकी व्यवस्था में लिखा है, कि ‘उन्होंने मुझ से व्यर्थ बैर किया।’
26 परन्तु जब वह सहायक आएगा, जिसे मैं तुम्हारे पास पिता की और से भेजूंगा, अर्थात् सत्य का आत्मा जो पिता की ओर से निकलता है, तो वह मेरी गवाही देगा।
27 और तुम भी गवाह हो क्योंकि तुम आरम्भ से मेरे साथ रहे हो।।
अध्याय 16
1 “ये बातें मैं ने तुम से इसलिये कहीं कि तुम ठोकर न खाओ।
2 वे तुम्हें आराधनालयों में से निकाल देंगे, वरन वह समय आता है, कि जो कोई तुम्हें मार डालेगा यह समझेगा कि मैं परमेश्वर की सेवा करता हूँ।
3 और यह वे इसलिये करेंगे कि उन्होंने न पिता को जाना है और न मुझे जानते हैं।
4 परन्तु ये बातें मैं ने इसलिये तुम से कहीं, कि जब उन का समय आए तो तुम्हें स्मरण आ जाए, कि मैं ने तुम से पहले ही कह दिया था,:
“और मैं ने आरम्भ में तुम से ये बातें इसलिये नहीं कहीं क्योंकि मैं तुम्हारे साथ था।
5 अब मैं अपने भेजनेवाले के पास जाता हूँ और तुम में से कोई मुझ से नहीं पूछता, ‘कि तू कहांकहाँ जाता हैं?’
6 परन्तु मैं ने जो ये बातें तुम से कही हैं, इसलिये तुम्हारा मन शोक से भर गया।
7 तौभी मैं तुम से सच कहता हूँ, कि मेरा जाना तुम्हारे लिये अच्छा है, क्योंकि यदि मैं न जाऊं, तो वह सहायक तुम्हारे पास न आएगा, परन्तु यदि मैं जाउँगाजाऊंगा, तो उसे तुम्हारे पास भेज दूँगा।
8 और वह आकर संसार को पाप और धार्मिकता और न्याय के विषय में निरूत्तर** करेगा।
9 पाप के विषय में इसलिये कि वे मुझ पर विश्वास नहीं करते;।
10 और धार्मिकता के विषय में इसलिये कि मैं पिता के पास जाता हूँ, और तुम मुझे फिर न देखोगे;
11 और तुम मुझे फिर न देखोगे: न्याय के विषय में इसलिये कि संसार का सरदार दोषी ठहराया गया है।
12 “मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते।
13 परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा, परन्तु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा।
14 वह मेरी महिमा करेगा, क्योंकि वह मेरी बातों में से लेकर तुम्हें बताएगा।
15 जो कुछ पिता का है, वह सब मेरा है; इसलिये मैं ने कहा, कि वह मेरी बातों में से लेकर तुम्हें बताएगा।
16 “थोड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे।”
17 तब उसके कितने चेलों ने आपस में कहा, “यह क्या है, जो वह हम से कहता है, ‘कि थोड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे?’ और यह ‘इसलिये कि मैं कि मैं पिता के पास जाता हूँ’?”
18 तब उन्होंने कहा, “यह ‘थोड़ी देर’ जो वह कहता है, क्या बात है? हम नहीं जानते, कि क्या कहता है।”
19 यीशु ने यह जानकर, कि वे मुझ से पूछना चाहते हैं, उनसे कहा, “क्या तुम आपस में मेरी इस बात के विषय में पूछ ताछपाछ करते हो, ‘कि थोड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे’?।
20 मैं तुम से सच सच कहता हूँ; कि तुम रोओगे और विलाप करोगे, परन्तु संसार आनन्द करेगा: तुम्हें शोक होगा, परन्तु तुम्हारा शोक आनन्द बन जाएगा।
21 जब स्त्री जनने लगती है तो उसको शोक होता है, क्योंकि उसकी दु:ख की घड़ी आ पहुंचीपहुँची, परन्तु जब वह बालक जन्म चुकी तो इस आनन्द से कि जगत में एक मनुष्य उत्पन्न हुआ, उस संकट को फिर स्मरण नहीं करती।
22 और तुम्हें भी अब तो शोक है, परन्तु मैं तुम से फिर मिलूँगामिलूंगा** और तुम्हारे मन में आनन्द होगा; और तुम्हारा आनन्द कोई तुम से छीन न लेगा।
23 उस दिन तुम मुझ से कुछ न पूछोगे: मैं तुम से सच सच कहता हूँ, यदि पिता से कुछ माँगोगे, तो वह मेरे नाम से तुम्हें देगा।
24 अब तक तुम ने मेरे नाम से कुछ नहीं माँगा; माँगो तो पाओगे ताकि तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए।।
25 “मैं ने ये बातें तुम से दृष्टान्तों में कही हैं, परन्तु वह समय आता है, कि मैं तुम से दृष्टान्तों में और फिर नहीं कहूँगा परन्तु खोलकर तुम्हें पिता के विषय में बताऊँगाबताऊंगा।
26 उस दिन तुम मेरे नाम से माँगोगे, और मैं तुम से यह नहीं कहता, कि मैं तुम्हारे लिये पिता से विनती करूँगा।
27 क्योंकि पिता तो आप ही तुम से प्रीति रखता है, इसलिये कि तुम ने मुझ से प्रीति रखी है, और यह भी प्रतीति की है, कि मैं पिता कि ओर से निकल आया।
28 मैं पिता से निकलकर जगत में आया हूँ, फिर जगत को छोड़कर पिता के पास जाता हूँ।”
29 उसके चेलों ने कहा, “देख, अब तो तू खोलकर कहता है, और कोई दृष्टान्त नहीं कहता।
30 अब हम जान गए, कि तू सब कुछ जानता है, और तुझे प्रयोजन नहीं, कि कोई तुझ से पूछे, इस से हम प्रतीति करते हैं, कि तू परमेश्वर से निकला है।”
31 यह सुन यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम अब प्रतीति करते हो?
32 देखो, वह घड़ी आती है वरन् आ पहुंचीपहुँची कि तुम सब तित्तर बित्तर होकर अपना अपना मार्ग लोगे, और मुझे अकेला छोड़ दोगे, तौभी मैं अकेला नहीं क्योंकि पिता मेरे साथ है।
33 मैं ने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि तुम्हें मुझ में शान्ति मिले; संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बांधो, मैं ने संसार को जीत लिया है।”।
अध्याय 17
1 यीशु ने ये बातें कहीं और अपनी आँखेआंखे आकाश की ओर उठाकर कहा, “हे पिता, वह घड़ी आ पहुंचीपहुँची, अपने पुत्र की महिमा कर, कि पुत्र भी तेरी महिमा करे ,।
2 क्योंकि तू ने उस का सब प्राणियों पर अधिकार दिया, कि जिन्हें तू ने उसको दिया है, उन सब को वह अनन्त जीवन दे।
3 और अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जाने।
4 जो काम तू ने मुझे करने को दिया था, उसे पूरा करके मैं ने पृथ्वी पर तेरी महिमा की है।
5 और अब, हे पिता, तू अपने साथ मेरी महिमा उस महिमा से कर जो जगत के होने से पहले, मेरी तेरे साथ थी।
6 “मैं ने तेरा नाम उन मनुष्यों पर प्रगट किया जिन्हें तू ने जगत में से मुझे दिया: वे तेरे थे और तू ने उन्हें मुझे दिया और उन्होंने तेरे वचन को मान लिया है।
7 अब वे जान गए हैं, कि जो कुछ तू ने मुझे दिया है, सब तेरी ओर से है।
8 क्योंकि जो बातें तू ने मुझे पहुँचापहुंचा दीं, मैं ने उन्हें उनको पहुँचापहुंचा दिया और उन्होंने उनको ग्रहण किया: और सच सच जान लिया है, कि मैं तेरी ओर से निकला हूँ, और प्रतीति कर ली है कि तू ही ने मुझे भेजा।
9 मैं उनकेलिये विनती करता हूँ, संसार के लिये विनती नहीं करता हूँ परन्तु उन्हीं के लिये जिन्हें तू ने मुझे दिया है, क्योंकि वे तेरे हैं।
10 और जो कुछ मेरा है वह सब तेरा है; और जो तेरा है वह मेरा है वह सब तेरा है; और जो तेरा है, वह मेरा है; और इन से मेरी महिमा प्रगट हुई है।
11 मैं आगे को जगत में न रहूँगा, परन्तु ये जगत में रहेंगे, और मैं तेरे पास आता हूँ; हे पवित्र पिता, अपने उस नाम से जो तू ने मुझे दिया है, उनकी रक्षा कर, कि वे हमारी समान नाई एक हों।
12 जब मैं उनके साथ था, तो मैं ने तेरे उस नाम से, जो तू ने मुझे दिया है, उनकी रक्षा की, मैं ने उनकी चौकसी की और विनाश के पुत्र को छोड़ उन में से काई नाश न हुआ, इसलिये कि पवित्र शास्त्र की बात पूरी हो।
13 परन्तु अब मैं तेरे पास आता हूँ, और ये बातें जगत में कहता हूँ, कि वे मेरा आनन्द अपने में पूरा पाएँपाएं।
14 मैं ने तेरा वचन उन्हें पहुँचापहुंचा दिया है, और संसार ने उनसे बैर किया, क्योंकि जैसा मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं।
15 मैं यह विनती नहीं करता, कि तू उन्हें जगत से उठा ले, परन्तु यह कि तू उन्हें उस दुष्ट** से बचाए रख।
16 जैसे मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं।
17 सत्य के द्वारा उन्हें पवित्र कर: तेरा वचन सत्य है।
18 जैसे तू ने जगत में मुझे भेजा, वैसे ही मैं ने भी उन्हें जगत में भेजा।
19 और उनकेलिये मैं अपने आप को पवित्र करता हूँ ताकि वे भी सत्य के द्वारा पवित्र किए जाएँ।
20 “मैं केवल इन्हीं के लिये विनती नहीं करता, परन्तु उनकेलिये भी जो इन के वचन के द्वारा मुझ पर विश्वास करेंगे, कि वे सब एक हों।
21 कि वे सब एक हों; जैसा तू हे पिता मुझ में हैं, और मैं तुझ में हूँ, वैसे ही वे भी हम में हों, इसलिये कि जगत प्रतीति करे, कि तू ही ने मुझे भेजा।
22 और वह महिमा जो तू ने मुझे दी, मैं ने उन्हें दी है कि वे वैसे ही एक हों जैसे की हम एक हैं।
23 मैं उन में और तू मुझ में कि वे सिद्ध होकर एक हो जाएँ, और जगत जाने कि तू ही ने मुझे भेजा, और जैसा तू ने मुझ से प्रेम रखा, वैसा ही उनसे प्रेम रखा।
24 हे पिता, मैमैं । चाहता हूँ कि जिन्हें तू ने मुझे दिया है, जहांजहाँ मैं हूँ, वहाँ वे भी मेरे साथ हों कि वे मेरी उस महिमा को देखें जो तू ने मुझे दी है, क्योंकि तू ने जगत की उत्पत्ति से पहले मुझ से प्रेम रखा।
25 हे धार्मिक पिता, संसार ने मुझे नहीं जाना, परन्तु मैं ने तुझे जाना और इन्हों ने भी जाना कि तू ही ने मुझे भेजा।
26 और मैं ने तेरा नाम उनको बताया और बताता रहूँगा कि जो प्रेम तुझ को मुझ से था, वह उन में रहे और मैं उन में रहूँ।”।
अध्याय 18
1 यीशु ये बातें कहकर अपने चेलों के साथ किद्रोन के नाले के पार गया, वहाँ एक बारी थी, जिसमें वह और उसके चेले गए।
2 और उसका पकड़वानेवाला यहूदा भी वह जगह जानता था, क्योंकि यीशु अपने चेलों के साथ वहाँ जाया करता था।
3 तब यहूदा पलटन को और महायाजकों और फरीसियों की ओर से प्यादों को लेकर दीपकों और मशालों और हथियारों को लिए हुए वहाँ आया।
4 तब यीशु उन सब बातों को जो उस पर आनेवाली थीं, जानकर निकला, और उनसे कहने लगा, “किसे ढूंढ़तेढूँढ़ते हो?”
5 उन्होंने उसको उत्तर दिया, “यीशु नासरी को।”: यीशु ने उनसे कहा, “मैं ही हूँ।”: और उसका पकड़वानेवाला यहूदा भी उनकेसाथ खड़ा था।
6 उसके यह कहते ही, “कि मैं हूँ,” वे पीछे हटकर भूमि पर गिर पड़े।
7 तब उसने फिर उनसे पूछा, “तुम किस को ढूंढ़तेढूँढ़ते हो।” वे बोले, “यीशु नासरी को।”
8 वे बोले, यीशु नासरी को। यीशु ने उत्तर दिया, “मैं तो तुम से कह चुका हूँ कि मैं ही हूँ, यदि मुझे ढूंढ़तेढूँढ़ते हो तो इन्हें जाने दो।”
9 यइ इसलिये हुआ, कि वह वचन पूरा हो, जो उसने कहा था: “कि जिन्हें तू ने मुझे दिया, उन में से मैं ने एक को भी न खोया।”
10 शमौन पतरस ने तलवार, जो उसके पास थी, खींची और महायाजक के दास पर चलाकर, उसका दहिना कान उड़ा दिया, उस दास का नाम मलखुस था।
11 तब यीशु ने पतरस से कहा, “अपनी तलवार काठी में रख: जो कटोरा पिता ने मुझे दिया है क्या मैं उसे न पीऊँपीऊं?”
12 तब सिपाहियों और उनके सूबेदार और यहूदियों के प्यादों ने यीशु को पकड़कर बान्ध बाँध लिया। लिया,
13 और पहले उसे हन्ना के पास ले गए क्योंकि वह उस वर्ष के महायाजक काइफा का ससुर था।
14 यह वही काइफा था, जिस ने यहूदियों को सलाह दी थी कि हमारे लोगों के लिये एक पुरूष का मरना अच्छा है।
15 शमौन पतरस और एक और चेला भी यीशु के पीछे हो लिए।: यह चेला महायाजक का जाना पहचाना था और यीशु के साथ महायाजक के आँगनआंगन में गया।
16 परन्तु पतरस बाहर द्वार पर खड़ा रहा, तब वह दूसरा चेला जो महायाजक का जाना पहचाना था, बाहर निकला, और द्वारपालिन से कहकर, पतरस को भीतर ले आया।
17 उस दासी ने जो द्वारपालिन थी, पतरस से कहा, “क्या तू भी इस मनुष्य के चेलों में से है?” उसने कहा, “मैं नहीं हूँ।”
18 दास और प्यादे जाड़े के कारण कोएले धधकाकर खड़े ताप रहे थे और पतरस भी उनकेसाथ खड़ा ताप रहा था।
19 तब महायाजक ने यीशु से उसके चेलों के विषय में और उसके उपदेश के विषय में पूछा।
20 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “कि मैं ने जागत से खोलकर बातें की; मैं ने सभाओं और आराधनालय में जहांजहाँ सब यहूदी इकट्ठे हुआ करते हैं सदा उपदेश किया और गुप्त में कुछ भी नहीं कहा।
21 तू मुझ से क्यों पूछता है? सुननेवालों से पूछ: कि मैं ने उनसे क्या कहा? देख वे जानते हैं; कि मैं ने क्या क्या कहा।”?
22 जब उसने यह कहा, तो प्यादों में से एक ने जो पास खड़ा था, यीशु को थप्पड़ मारकर कहा, “क्या तू महायाजक को इस प्रकार उत्तर देता है।”
23 यीशु ने उसे उत्तर दिया, “यदि मैं ने बुरा कहा, तो उस बुराई पर गवाही दे; परन्तु यदि भला कहा, तो मुझे क्यों मारता है?”
24 हन्ना ने उसे बन्धे हुए काइफा महायाजक के पास भेज दिया।
25 शमौन पतरस खड़ा हुआ आग ताप रहा था। तब उन्होंने उससे कहा; “क्या तू भी उसके चेलों में से है?” उसने इन्कार करके कहा, “मैं नहीं हूँ।”
26 महायाजक के दासों में से एक जो उसके कुटुम्ब में से था, जिसका कान पतरस ने काट डाला था, बोला, “क्या मैं ने तुझे उसके साथ बारी में न देखा था?”
27 पतरस फिर इन्कार कर गया और तुरन्त मुर्ग ने बाँंग दी।
28 और वे यीशु को काइफा के पास से किले को ले गए और भोर का समय था, परन्तु वे आप किले के भीतर न गए ताकि अशुद्ध न हों परन्तु फसह खा सकें। 29 तब पीलातुस उनकेपास बाहर निकल आया और कहा, “तुम इस मनुष्य पर किस बात की नालिया आरोप लगातेकरते हो?”
30 उन्होंने उसको उत्तर दिया, “कि यदि वह कुकर्मी न होता तो हम उसे तेरे हाथ न सौंपते।”
31 पीलातुस ने उनसे कहा, “तुम ही इसे ले जाकर अपनी व्यवस्था के अनुसार उसका न्याय करे।”करो : यहूदयों ने उससे कहा, “हमें अधिकार नहीं कि किसी का प्राण लें।”
32 यह इसलिये हुआ, कि यीशु की वह बात पूरी हो जो उसने यह पता देते हुए कही थी, कि उसका मरना कैसा होगा।।
33 तब पीलातुस फिर किले के भीतर गया और यीशु को बुलाकर, उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है?”
34 यीशु ने उत्तर दिया, “क्या तू यह बात अपनी ओर से कहता है या औरों ने मेरे विषय में तुझ से कही?”
35 पीलातुस ने उत्तर दिया, “क्या मैं यहूदी हूँ? तेरी ही जाति और महायाजकों ने तुझे मेरे हाथ सौंपा, तू ने क्या किया है?”
36 यीशु ने उत्तर दिया, कि “मेरा राज्य इस जगत का नहीं, यदि मेरा राज्य इस जगत का होता, तो मेरे सेवक लड़ते, कि मैं यहूदियों के हाथ सौंपा न जाता: परन्तु अब मेरा राज्य यहाँ का नहीं।”
37 पीलातुस ने उससे कहा, “तो क्या तु राजा है?” यीशु ने उत्तर दिया, “कि तू कहता है, क्योंकि मैं राजा हूँ; मैं ने इसलिये जन्म लिया, और इसलिये जगत में आया हूँ कि सत्य पर गवाही दूँ जो कोई सत्य का है, वह मेरा शब्द सुनता है।”
38 पीलातुस ने उससे कहा, “सत्य क्या है?” और यह कहकर वह फिर यहूदियों के पास निकल गया और उनसे कहा, “मैं तो उसमें कुछ दोष नहीं पाता।
39 पर तुम्हारी यह रीति है कि मैं फसह में तुम्हारे लिये एक व्यिक्तव्यक्ति को छोड़ दूँ। सो क्या तुम चाहते हो, कि मैं तुम्हारे लिये यहूदियों के राजा को छोड़ दूँ ?”
40 तब उन्होंने फिर चिल्लाकर कहा, “इसे नहीं परन्तु हमारे लिये बरअब्बा को छोड़ दे।”; और बरअब्बा डाकू था।।
अध्याय 19
1 इस पर पीलातुस ने यीशु को लेकर कोड़े लगवाए।
2 और सिपाहियों ने काँटोंकांटों का मुकुट गूंथकरगुँथकर उसके सिर पर रखा, और उसे बैंजनी वस्त्र पहिनाया,।
3 और उसके पास आ आकर कहने लगे, “हे यहूदियों के राजा, प्रणाम!” और उसे थप्पड़ मारे।
4 तब पीलातुस ने फिर बाहर निकलकर लोगों से कहा, “देखो, मैं उसे तुम्हारे पास फिर बाहर लाता हूँ; ताकि तुम जानो कि मैं कुछ भी दोष नहीं पाता।”
5 तब यीशु काँंटों का मुकुट और बैंजनी वस्त्र पहिने हुए बाहर निकला और पीलातुस ने उनसे कहा, “देखो, यह पुरूष।”
6 जब महायाजकों और प्यादों ने उसे देखा, तो चिल्लाकर कहा, “कि उसे क्रूस पर चढ़ा, क्रूस पर!” : पीलातुस ने उनसे कहा, “तुम ही उसे लेकर क्रूस पर चढ़ाओ; क्योंकि मैं उसमें दोष नहीं पाता।”
7 यहूदियों ने उसको उत्तर दिया, “कि हमारी भी व्यवस्था है और उस व्यवस्था के अनुसार वह मारे जाने के योग्य है क्योंकि उसने अपने आप को परमेश्वर का पुत्र बनाया।”
8 जब पीलातुस ने यह बात सुनी तो और भी डर गया।
9 और फिर किले के भीतर गया और यीशु से कहा, “तू कहांकहाँ का है?” परन्तु यीशु ने उसे कुछ भी उत्तर न दिया।
10 पीलातुस ने उससे कहा, “मुझ से क्यों नहीं बोलता? क्या तू नहीं जानता कि तुझे छोड़ देने का अधिकार मुझे है और तुझे क्रूस पर चढ़ाने का भी मुझे अधिकार है।”
11 यीशु ने उत्तर दिया, “कि यदि तुझे ऊपर से न दिया जाता, तो तेरा मुझ पर कुछ अधिकार न होता; इसलिये जिस ने मुझे तेरे हाथ पकड़वाया है, उसका पाप अधिक है।”
12 इस से पीलातुस ने उसे छोड़ देना चाहा, परन्तु यहूदियों ने चिल्ला चिल्लाकर कहा, “यदि तू इस को छोड़ देगा तो तेरी भिक्त कैसर की ओर नहीं; जो कोई अपने आप को राजा बनाता है वह कैसर का साम्हना करता है।”
13 ये बातें सुनकर पीलातुस यीशु को बाहर लाया और उस जगह एक चबूतरा था जो इब्रानी में ‘गब्बता’ कहलाता है, और न्याय आसन पर बैठा।
14 यह फसह की तैयारी का दिन था और छठे घंटे के लगभग था: तब उसने यहूदियों से कहा, “देखो, यही है, तुम्हारा राजा!”
15 परन्तु वे चिल्लाए, कि “ले जा! ले जा! उसे क्रूस पर चढ़ा!”: पीलातुस ने उनसे कहा, “क्या मैं तुम्हारे राजा को क्रूस पर चढ़ाऊँचढ़ाऊं?” महायाजकों ने उत्तर दिया, “कि कैसर को छोड़ हमारा और कोई राजा नहीं।”
16 तब उसने उसे उनके हाथ सौंप दिया ताकि वह क्रूस पर चढ़ाया जाए।
17 तब वे यीशु को ले गए। और वह अपना क्रूस उठाए हुए उस स्थान तक बाहर गया, जो ‘खोपड़ी का स्थान’ कहलाता है और इब्रानी में ‘गुलगुता’।
18 वहाँ उन्होंने उसे और उसके साथ और दो मनुष्यों को क्रूस पर चढ़ाया, एक को इधर और एक को उधर, और बीच में यीशु को।
19 और पीलातुस ने एक दोष-पत्र लिखकर क्रूस पर लगा दिया और उसमें यह लिखा हुआ था, “यीशु नासरी यहूदियों का राजा।”
20 यह दोष-पत्र बहुत यहूदियों ने पढ़ा क्योंकि वह स्थान जहांजहाँ यीशु क्रूस पर चढ़ाया गया था नगर के पास था और पत्र इब्रानी और लतीनी और यूनानी में लिखा हुआ था।
21 तब यहूदियों के महायाजकों ने पीलातुस से कहा, “ ‘यहूदियों का राजा’ मत लिख परन्तु यह कि ‘उसने कहा, मैं यहूदियों का राजा हूँ’।”हूँः।
22 पीलातुस ने उत्तर दिया, “कि मैं ने जो लिख दिया, वह लिख दिया।”।
23 जब सिपाही यीशु को क्रूस पर चढ़ा चुके, तो उसके कपड़े लेकर चार भाग किए, हर सिपाही के लिये एक भाग और कुरता भी लिया, परन्तु कुरता बिन सीअन ऊपर से नीचे तक बुना हुआ था: इसलिये उन्होंने आपस में कहा, हम इस को न फाडें, परन्तु इस पर चिट्ठी डालें कि वह किस का होगा।
24 इसलिये उन्होंने आपस में कहा, “हम इस को न फाडें, परन्तु इस पर चिट्ठी डालें कि वह किस का होगा।” यह इसलिये हुआ, कि पवित्र शास्त्र की बात पूरी हो, कि “उन्होंने मेरे कपड़े आपस में बाँट लिए और मेरे वस्त्र पर चिट्ठी डाली।”:
सो सिपाहियों ने ऐसा ही किया।
25 सो सिपाहियों ने ऐसा ही किया। परन्तु यीशु के क्रूस के पास उसकी माता और उसकी माता की बहिन मरियम, क्लोपास की पत्नी और मरियम मगदलीनी खड़ी थी।
26 यीशु ने अपनी माता और उस चेले को जिस से वह प्रेम रखता था पास खड़े देखकर अपनी माता से कहा,; “हे नारी,** देख, यह तेरा पुत्र है।”
27 तब उस चेले से कहा, “यह तेरी माता है।”, और उसी समय से वह चेला, उसे अपने घर ले गया।
28 इस के बाद यीशु ने यह जानकर कि अब सब कुछ हो चुका; इसलिये कि पवित्र शास्त्र की बात पूरी हो कहा, “मैं प्यासा हूँ।”
29 वहाँ एक सिरके से भरा हुआ बर्तन धरा था, सो उन्होंने सिरके के भिगोए हुए इस्पंज को जूफे पर रखकर उसके मुँहमुंह से लगाया।
30 जब यीशु ने वह सिरका लिया, तो कहा, “पूरा हुआ”; और सिर झुकाकर प्राण त्याग दिए।
31 और इसलिये कि वह तैयारी का दिन था, यहूदियों ने पीलातुस से विनती की कि उनकी टांगे तोड़ दी जाएँ और वे उतारे जाएँ ताकि सब्त के दिन वे क्रूसों पर न रहें, क्योंकि वह सब्त का दिन बड़ा दिन था।
32 सो सिपाहियों ने आकर पहले की टांगें तोड़ीं तब दूसरे की भी, जो उसके साथ क्रूसों पर चढ़ाए गए थे।
33 परन्तु जब यीशु के पास आकर देखा कि वह मर चुका है, तो उसकी टांगें न तोड़ीं।
34 परन्तु सिपाहियों में से एक ने बरछे से उसका पंजर बेधा और उसमें से तुरन्त लोहू और पानी निकला।
35 जिस ने यह देखा, उसी ने गवाही दी है, और उसकी गवाही सच्ची है; और वह जानता है, कि सच कहता है कि तुम भी विश्वास करो।
36 ये बातें इसलिये हुईं कि पवित्र शास्त्र की यह बात पूरी हो, “कि उसकी कोई हड्डी तोड़ी न जाएगी।”
37 फिर एक और स्थान पर यह लिखा है, “कि जिसे उन्होंने बेधा है, उस पर दृष्टि करेंगे।”
38 इन बातों के बाद अरमतियाह के यूसुफ ने, जो यीशु का चेला था, (परन्तु यहूदियों के डर से इस बात को छिपाए रखता था), पीलातुस से विनती की, कि मैं यीशु की शवलोथ को ले जाऊँं, और पीलातुस ने उसकी विनती सुनी, और वह आकर उसकी शवलोथ ले गया।
39 निकुदेमुस भी जो पहले यीशु के पास रात को गया था पचास सेर के लगभग मिला हुआ गन्धरस और एलवा ले आया।
40 तब उन्होंने यीशु की शवलोथ को लिया और यहूदियों के गाड़ने की रीति के अनुसार उसे सुगन्ध द्रव्य के साथ कफन में लपेटा।
41 उस स्थान पर जहांजहाँ यीशु क्रूस पर चढ़ाया गया था, एक बारी थी; और उस बारी में एक नई कब्र थी; जिसमें कभी कोई न रखा गया था।
42 सो यहूदियों की तैयारी के दिन के कारण, उन्होंने यीशु को उसी में रखा, क्योंकि वह कब्र निकट थी।।
अध्याय 20
1 सप्ताह के पहले दिन मरियम मगदलीनी भोर को अंधेरा रहते ही कब्र पर आई, और पत्थर को कब्र से हटा हुआ देखा।
2 तब वह दौड़ी और शमौन पतरस और उस दूसरे चेले के पास जिस से यीशु प्रेम रखता था आकर कहा, “वे प्रभु को कब्र में से निकाल ले गए हैं; और हम नहीं जानतीं, कि उसे कहांकहाँ रख दिया है।”
3 तब पतरस और वह दूसरा चेला निकलकर कब्र की ओर चले।
4 और दोनों साथ साथ दौड़ रहे थे, परन्तु दूसरा चेला पतरस से आगे बढ़कर कब्र पर पहले पहुँचापहुंचा।
5 और झुककर कपड़े पड़े देखे: तौभी वह भीतर न गया।
6 तब शमौन पतरस उसके पीछे पीछे पहुँचापहुंचा और कब्र के भीतर गया और कपड़े पड़े देखे।
7 और वह अंगोछा जो उसके सिर से बन्धा हुआ था, कपड़ों के साथ पड़ा हुआ नहीं परन्तु अलग एक जगह लपेटा हुआ देखा।
8 तब दूसरा चेला भी जो कब्र पर पहले पहुँचापहुंचा था, भीतर गया और देखकर विश्वास किया।
9 वे तो अब तक पवित्र शास्त्र की वह बात न समझते थे, कि उसे मरे हुओं में से जी उठना होगा।
10 तब ये चेले अपने घर लौट गए।
11 परन्तु मरियम रोती हुई कब्र के पास ही बाहर खड़ी रही और रोते रोते कब्र की ओर झुककर,
12 दो स्वर्गदूतों को उज्जवत कपड़े पहिने हुए एक को सिरहाने और दूसरे को पैताने बैठे देखा, जहांजहाँ यीशु की शवलोथ पड़ी थी।
13 उन्होंने उससे कहा, “हे नारी, तू क्यों रोती है?” उसने उनसे कहा, “वे मरे प्रभु को उठा ले गए और मैं नहीं जानती कि उसे कहांकहाँ रखा है।”
14 यह कहकर वह पीछे फिरी और यीशु को खड़े देखा और न पहचाना कि यह यीशु है।
15 यीशु ने उससे कहा, “हे नारी तू क्यों रोती है? किस को ढूंढ़ती है?” उसने माली समझकर उससे कहा, “हे महाराज, यदि तू ने उसे उठा लिया है तो मुझ से कह कि उसे कहांकहाँ रखा है और मैं उसे ले जाऊँंगी।”
16 यीशु ने उससे कहा, “मरियम!” उसने पीछे फिरकर उससे इब्रानी में कहा, “रब्बूनी!” अर्थात् ‘हे गुरूगुरु’।
17 यीशु ने उससे कहा, “मुझे मत छू** क्योंकि मैं अब तक पिता के पास ऊपर नहीं गया, परन्तु मेरे भाइयों के पास जाकर उनसे कह दे, कि मैं अपने पिता, और तुम्हारे पिता, और अपने परमेश्वर और तुम्हारे परमेश्वर के पास ऊपर जाता हूँ।”
18 मरियम मगदलीनी ने जाकर चेलों को बताया, “कि मैं ने प्रभु को देखा और उसने मुझ से बातें कहीं।”
19 उसी दिन जो सप्ताह का पहिला दिन था, संध्या के समय जब वहाँ के द्वार जहांजहाँ चेले थे, यहूदियों के डर के मारे बन्द थे, तब यीशु आया और बीच में खड़ा होकर उनसे कहा, “तुम्हें शान्ति मिले।”
20 और यह कहकर उसने अपना हाथ और अपना पंजर उनको दिखाए: तब चेले प्रभु को देखकर आनन्दित हुए।
21 यीशु ने फिर उनसे कहा, “तुम्हें शान्ति मिले; जैसे पिता ने मुझे भेजा है, वैसे ही मैं भी तुम्हें भेजता हूँ।”
22 यह कहकर उसने उन पर फूंका और उनसे कहा, “पवित्र आत्मा लो।
23 जिन के पाप तुम क्षमा करो वे उनकेलिये क्षमा किए गए हैं जिन के तुम रखो, वे रखे गए हैं।।”
24 परन्तु बारहों में से एक व्यिक्तव्यक्ति अर्थात् थोमा जो दिदुमुस** कहलाता है, जब यीशु आया तो उनकेसाथ न था।
25 जब और चेले उससे कहने लगे, “कि हम ने प्रभु को देखा है,”: तब उसने उनसे कहा, “जब तक मैं उस के हाथों में कीलों के छेद न देख लूँं, और कीलों के छेदों में अपनी उँंगली न डाल लूँलूं, तब तक मैं प्रतीति नहीं करूँगा।”।
26 आठ दिन के बाद उस के चेले फिर घर के भीतर थे, और थोमा उनकेसाथ था, और द्वार बन्द थे, तब यीशु ने आकर और बीच में खड़ा होकर कहा, “तुम्हें शान्ति मिले।”
27 तब उसने थोमा से कहा, “अपनी उँंगली यहाँ लाकर मेरे हाथों को देख और अपना हाथ लाकर मेरे पंजर में डाल और अविश्वासी नहीं परन्तु विश्वासी हो।”
28 यह सुन थोमा ने उत्तर दिया, “हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर !”
29 यीशु ने उससे कहा, “तू ने तो मुझे देखकर विश्वास किया है?, धन्य हैं वे जिन्हों ने बिना देखे विश्वास किया।”
30 यीशु ने और भी बहुत चिन्ह चेलों के साम्हने दिखाए, जो इस पुस्तक में लिखे नहीं गए।
31 परन्तु ये इसलिये लिखे गए हैं, कि तुम विश्वास करो, कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र मसीह है: और विश्वास करके उसके नाम से जीवन पाओ।।
अध्याय 21
1 इन बातों के बाद यीशु ने अपने आप को तिबिरियास झील के किनारे चेलों पर प्रगट किया और इस रीति से प्रगट किया।
2 शमौन पतरस और थोमा जो दिदुमुस कहलाता है, और गलील के काना नगर का नतनएल और जब्दी के पुत्र, और उसके चेलों में से दो और जन इकट्ठे थे।
3 शमौन पतरस ने उनसे कहा, “मैं मछली पकड़ने जाता हूँ।”: उन्होंने उससे कहा, “हम भी तेरे साथ चलते हैं।”: सो वे निकलकर नाव पर चढ़े, परन्तु उस रात कुछ न पकड़ा।
4 भोर होते ही यीशु किनारे पर खड़ा हुआ; तौभी चेलों ने न पहचाना कि यह यीशु है।
5 तब यीशु ने उनसे कहा, “हे बालको, क्या तुम्हारे पास कुछ खाने को है?” उन्होंने उत्तर दिया, कि “नहीं।”
6 उसने उनसे कहा, “नाव की दहिनी ओर जाल डालो, तो पाओगे।”, तब उन्होंने जाल डाला, और अब मछलियों की बहुतायत के कारण उसे खींच न सके।
7 इसलिये उस चेले ने जिस से यीशु प्रेम रखता था पतरस से कहा, “यह तो प्रभु है।”: शमौन पतरस ने यह सुनकर कि प्रभु है, कमर में अंगरखा कस लिया, क्योंकि वह नंगा था, और झील में कूद पड़ा।
8 परन्तु और चेले डोंगी पर मछलियों से भरा हुआ जाल खींचते हुए आए, क्योंकि वे किनारे से अधिक दूर नहीं, कोई दो सौ हाथ पर थे।
9 जब किनारे पर उतरे, तो उन्होंने कोएले की आग, और उस पर मछली रखी हुई, और रोटी देखी।
10 यीशु ने उनसे कहा, “जो मछलियाँ तुम ने अभी पकड़ी हैं, उन में से कुछ लाओ।”
11 शमौन पतरस ने डोंगी पर चढ़कर एक सौ तिरपनर्पन बड़ी मछलियों से भरा हुआ जाल किनारे पर खींचा, और इतनी मछलियाँ होने पर भी जान न फटा।
12 यीशु ने उनसे कहा, “कि आओ, भोजन करो।” और चेलों में से किसी को हियाव न हुआ, कि उससे पूछे, “कि तू कौन है?” क्योंकी वे जानते थे की यह प्रभु है।
13 यीशु आया, और रोटी लेकर उन्हें दी, और वैसे ही मछली भी।
14 यह तीसरी बार है, कि यीशु ने मरे हुओं में से जी उठने के बाद चेलों को दर्शन दिए।
15 भोजन करने के बाद यीशु ने शमौन पतरस से कहा, “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू इन से बढ़कर मुझ से प्रेम रखता है?” उसने उससे कहा, “हाँं प्रभु; तू तो जानता है, कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ।”: उसने उससे कहा, “मेरे मेमनों को चरा।”
16 उसने फिर दूसरी बार उससे कहा, “हे शमौन यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रेम रखता है?” उसने उनसे कहा, “हाँं, प्रभु तू जानता है, कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ।”: उसने उससे कहा, “मेरी भेड़ों की रखवाली कर।”
17 उसने तीसरी बार उससे कहा, “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रीति रखता है?” पतरस उदास हुआ, कि उसने उसे तीसरी बार ऐसा कहा,; “कि क्या तू मुझ से प्रीति रखता है?” और उससे कहा, “हे प्रभु, तू तो सब कुछ जानता है: तू यह जानता है कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ।”: यीशु ने उससे कहा, “मेरी भेड़ों को चरा।”
18 “मैं तुझ से सच सच कहता हूँ, जब तू जवान था, तो अपनी कमर बान्धकर जहांजहाँ चाहता था, वहाँ फिरता था; परन्तु जब तू बूढ़ा होगा, तो अपने हाथ लम्बे करेगा, और दूसरा तेरी कमर बान्धकर जहांजहाँ तू न चाहेगा वहाँ तुझे ले जाएगा।”
19 उसने इन बातों से पता दिया कि पतरस कैसी मृत्यु से परमेश्वर की महिमा करेगा; और यह कहकर, उससे कहा, “मेरे पीछे हो ले।”
20 पतरस ने फिरकर उस चेले को पीछे आते देखा, जिस से यीशु प्रेम रखता था, और जिस ने भोजन के समय उसकी छाती की और झुककर पूछा “हे प्रभु, तेरा पकड़वानेवाला कौन है?”
21 उसे देखकर पतरस ने यीशु से कहा, “हे प्रभु, इस का क्या हाल होगा?”
22 यीशु ने उससे कहा, “यदि मैं चाहूँ कि वह मेरे आने तक ठहरा रहे, तो तुझे क्या? तू मेरे पीछे हो ले।”
23 इसलिये भाइयों में यह बात फैल गई, कि वह चेला न मरेगा; तौभी यीशु ने उससे यह नहीं कहा, कि यह न मरेगा, परन्तु यह कि “यदि मैं चाहूँ कि यह मेरे आने तक ठहरा रहे, तो तुझे इस से क्या?”
24 यह वही चेला है, जो इन बातों की गवाही देता है और जिस ने इन बातों को लिखा है और हम जानते हैं, कि उसकी गवाही सच्ची है।
25 और भी बहुत से काम हैं, जो यीशु ने किए; यदि वे एक एक करके लिखे जाते, तो मैं समझता हूँ, कि पुस्तकें जो लिखी जातीं वे जगत में भी न समातीं।।